Book Title: Vagbhattalankar
Author(s): Vagbhatt Mahakavi, Satyavratsinh
Publisher: Chaukhamba Vidyabhavan

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Page 11
________________ ( १० ) के पञ्चमपरिच्छेद में अन्य की समाप्ति की गयी है। इसमें मुख्यतः रसों पर ही विचार किया गया है; किन्तु प्रसङ्गवश नायक और नायिका-मेद का भी उचित उल्लेख हुआ है। सर्वप्रथम रसों का महत्त्व बताया गया है - जिस प्रकार उत्तम रीति से पकाया हुआ भी साथ पदार्थ नमक के बिना नीरस लाना है,सप्रकार राज्य लिये अनास्वाथ रहता है। लड़नन्तर रस का लक्षण बताकर उनके नामों की गणना की गयी है । शृङ्गार, वीर, करुण, हास्य, अद्भुत, भयानक, रौद्र, वीभत्स और शान्त – दे नव रस हैं जिनके स्थायी भाव क्रमश: है रति, दास, शोक, क्रोध, उत्साह, भय, जुगुप्सा, विस्मय और राम | सर्वप्रथम शृङ्गार रस का निरुपण हुआ है। शृङ्गार के दो पक्ष हैंसंयोग और वियोग कार में कैसा नायक होना चाहिये - यह बताकर नायकों के विभिन्न भेदों की गणना की गयी है। वाग्भट ने नायक के चार भेदों का उल्लेख किया - अनुकूल, दक्षिण, शुद्ध और धृष्ट । नायिकाओं के भी चार भेद बतलाये गये हैअनूढा, स्वकीया, परकीया और पणाङ्गना । तदुपरान्त विभिन्न प्रकार के नायक नायिकाओं का पृथक्-पृथक् लक्षण बताया गया है। चार प्रकार का विमलम्भ शृङ्गार बतलाया गया है – पूर्वानुरागात्मक, आनात्मक, प्रवासात्मक और कमगात्मक। इन सबका पृथक्-पृथक् लक्षण-निरूपण हुआ है। इसके पश्चात् क्रमशः एक-एक रस पर विचार हुआ है। हास्य के भेदों का भी उल्लेख है । अन्य की परिसमाप्ति जिस इलोक से हुई है वह इस प्रकार हैदो बेरुतमाश्रितं गुणमेस अमत्कारिणं नानालङ्कृतिभिः परीतममितो या स्फुरन्या सताम् । Redeaoमयतां गर्भ नवरसेकका कविः स्वष्टाशे वश्यन्तु काव्य पुरुष सारस्वताभ्यामिनः ॥ अर्थात् बाय के अध्येता कवि प्रजापति दोर्षो से रहित गुणों से युक्त, अनेक अलङ्कारों द्वारा मन में चमत्कार पैदा करनेवाले, वैदर्भी आदि रीतियों से युक्त, कार आदि नवरसों के साथ तन्मयता को प्राप्त हुये काज्यपुरुष को कालपर्यन्त रचते रहें । अस्तुत लोक में सद्भावना व्यक्त करने के साथ ही सम्पूर्ण ग्रन्थ का सिंहावलोकन भी हो गया है । प्रन्ध में विभिन्न परिच्छेदों में जिस क्रम से भिन्न-भिन्न विषयों का निरूपण हुआ है, बद्दी कम इस श्लोक में सुरक्षित रखा गया है। अतः यह इश्क अन्य की अनुक्रमणिकारूप में भी समझा जा सकता है। अस्तु, उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट दी है कि काल्य के प्रत्येक आवश्यक अङ्ग पर आचार्य वाग्भट ने विचार किया है। प्रस्तुत ग्रन्थ केवल अलङ्कारों का ही ग्रन्थ नहीं अपितु काव्यशास्त्र का एक पूर्ण प्रारम्भिक अन्य है।

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