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प्रथमः परिषदेवः। जरा राग लोपको नाम । .. नरसिदगई क्यम् । इदं काव्य हारमाकिव्य वाचनीयम् ॥ २४॥
हारबन्धचित्रम्
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क्ष का का
श्या तिपा
मैं उन शिवजी का वर्णन कह जिनकी स्तुति चन्द्रमा द्वारा की जाया करती है, (जिमकी तपस्या से) उन इन देव का आसम प्रकम्पित हो जामा करता है जो शीत्र ही नाना प्रकार के दुःखों का विनाश कर देते हैं, जो पापान्धकार के मष्ट करने वाले हैं और जिनके केश अनवरत रूप से पाचन तप में रहने के कारण विगलित हो गये हैं। (यहाँ 'सम्नेदितम्' के रकार और 'पटुलिसम्' के लकार में अभेद मामा गमा है)॥२५॥ चित्रे वयोर क्यं यथा
प्रभण्डमल निष्काम प्रकाशितमहागम | भाषतस्वमि देव मालमत्रासुता वध ॥ २५॥ :