Book Title: Vagbhattalankar
Author(s): Vagbhatt Mahakavi, Satyavratsinh
Publisher: Chaukhamba Vidyabhavan

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Page 32
________________ द्वितीयः परिच्छेदः । अत्र पूर्वोक्नेवार्थमुपसंहा अधीत्य शास्त्राण्यभियोगयोगाभ्यासवश्यार्थपद्मपचः । सं तं विदित्वा समयं कवीनां मनः प्रसत्तौ कवितां विध्यात् ॥ २६ ॥ अभियोगस्योपमस्य योगात् शाखाणि धर्मशाखकामशास्त्रार्थशास्त्रशस्त्रशास्त्र नीतिशास्त्रवैषशा काययोसियार यूएन अर्थपदानि सेब प्रयचः अभ्यासेन वश्यो वशवर्ती अर्धपदप्रपचः शब्दार्थप्रो यस्य स सं सं प्रसिद्धं पूर्वकविप्रयुक्तं कवीनां समयं कविसिद्धान्तं शाखा तत्तो मनलात्तस्य प्रस खतीत्यर्थः । कवेः कर्म कवित्वं तां विदध्यात्कुर्यात् ॥ २६ ॥ इति वाग्मटाकार व्याख्यायां सिंहदेवगणकृतायां प्रथमः परिच्छेदः । २ वा० लं० १७ सतत अभ्यास के कारण जिसे अर्थों और पदों के औचित्य का सम्यग्ज्ञाम हो चुका है वह कवि व्याकरण, छन्द और अलंकारादि शास्त्रों का अध्ययन करे। तत्पश्चात् पूर्वकालीन काव्यशास्त्र के मर्मज्ञों द्वारा निर्दिष्ट सिद्धान्तों का पालन करके चिकण दर्शन श्रवणादि के संयोग से उस समय काव्यरचमा में प्रवृत्त हो जिस समय मन सब प्रकार की चिन्ताओं से मुक्त हो ॥ २६ ॥ ॥ प्रथम परिच्छेद समाप्त ॥ 1000B*

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