Book Title: Vagbhattalankar
Author(s): Vagbhatt Mahakavi, Satyavratsinh
Publisher: Chaukhamba Vidyabhavan

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Page 74
________________ चतुर्थः परिच्छेवः । वे राजाधिराज जयसिंह जिनका प्रताप सूर्य के समान दूसरों (बैरियों) को तप्त करने वाला है,जो उस्कट तेजराशि वाले हैं और जिनकी भुजायें अर्गला के समान दीर्धकाय एवं चलिए है, संसार में अपनी शुभ्र फीति को फैलाते हुए जय को प्राप्त थे। टिप्पणी राह पर चारों पारे में 'ज' वर्ण की आवृत्ति दूर दूर होने से अयुतावृत्तिमूखक पर्णयमक है ॥ ४५ ॥ संयुतासंयताच्चियथा मामाकारयते रामा सा सा मुदितमानसा | या या मदारुणच्छाया नानाहेलामयानना ॥ ४६ ।। सा सा रामा मामाकारत आइयति । या या मदारुणछाया मदेनारूणा आरत्ता छाया शोभा यस्याः सा महारुणच्छाया। या या मुदितमानसा इष्टचित्ता च । तथा नानाइलामयानना नानाविधमनेकप्रकार इलामयं लीलामयमाननं यस्याः सा । अत्र मामा सा सा इत्यादि संयुसायमकम् । पादान्ते च मासे स्पायुतायमकम् । समासाश्चत्वारोऽपि शम्बालङ्काराः ॥ ४६ ॥ जो जो नायिका मदिरापान से रक्तिम नामावाली और नाना प्रकार के हावभावों का प्रदर्शन करने वाली हो जाती है वही बामन्द से मुझको पुकार उठती है। टिप्पणी- यहाँ पर 'मा', 'सा', 'या' और 'ना' वर्णों की प्राप्ति पास पास और दूर दूर होने से संयुत और अयुत दोमो प्रकार के वर्णयमक का उदाहरण है ॥४३॥ अथालिहारा उच्यन्ते स्वभावोक्तिः पदार्थस्य सक्रियस्याक्रियस्य था । जातिविशेषतो रम्या हीनत्रस्ताभकादिषु ।। ४७ ॥ पदार्थस्य सक्रियस्य क्रियासदिसस्य अनियस्य वा क्रियारहितस्य वा स्वभावोक्तियाँ सा. जातिक्ष्ष्यते। हीन प्रस्ताभकादिपु स्वभावोक्तिः सहजक्रथनं विशेषतः सा जातिरुच्यते । दोनो दीनबस्ती मीतः, अर्भका बालकाः, श्यादिगु स्वभावोक्तिविशेषतो रम्या जातिः । कोऽर्थः। यस्य पदार्थस्य यादृशः स्वमावस्तस्यैव स्वभावस्य यस्कथनं सा जातिरगन्तव्या । होने हीनस्वभाववर्णनन् , परते अस्तलक्षणम् । अमंफादिषु तान्येव लक्षणानि वण्यन्ते । न तु उपमाथलकारेणापस्याथानयनं क्रियते सा जातिरिति ।। ४७ ॥ चेतन अथवा जब पदार्थों के स्वभाव-कपन को जाति कहते हैं, इसी का दूसरा नाम स्वमायोतिबलधार है। यह अलझार क्षुद वस्तुओं और शलकों में विशेष शोभा को प्राप्त होता है ॥ ४५ ॥

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