Book Title: Vagbhattalankar
Author(s): Vagbhatt Mahakavi, Satyavratsinh
Publisher: Chaukhamba Vidyabhavan

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Page 98
________________ ८३ चतुर्थः परिच्छेदः । हे प्रभो ! भोर संग्राम में सापकी सेना के अश्वतमूह और वैरिपनियों में देष-सा हो गया है क्योंकि एक (असमूह) अपमे पाव-प्रहार से अत्यधिक धूलि को छिटका देता है किन्तु रिपलियाँ उसे अपने अश्रुषों से धो सकती हैं। ___ टिप्पणी- यहाँ पर संहारूप विवक्षित अर्थ की प्रतीति उनकी स्त्रियों के अश्रुपात वर्णन में हो जाती है! जीशिये पर 'पर्यायोति अलार का उदाहरण हुला 1100 समाधिन लक्षयति कारणान्तरसम्पत्तिर्दैवादारम्भ एव हि। यन्त्र कार्यस्य जायेत तनायेत समाहितम् ।। १०६ ।। यत्र कार्यस्यारम्भ एव दैवात्कारणान्सरसम्पत्तिर्जायेत सरसमाधितं जायत ।। १०९ ॥ जिस अहहार में एक कार्य के प्रारम्भ होतेही भाग्यवशाय (उस कार्य में सहायता करने वाला) अन्य कारण भी घटित हो जाता हो वसे 'समाहित कहते हैं॥ ९॥ उदाहरसि मनस्विनी पंचमवेश्म गन्तुमुत्कण्ठिता याषदभूनिशायाम् । ताबवाम्भोधरधीरनामोधितः सौधशिखी पुकूज ।। ११० ।। _ पावन्मनस्मिमी निशाको वभवेश्म गन्तुमुस्कण्ठिताभूत, सावनवाम्मोधरधारनादपनोथितः सौपशिखी गृहकीडामयूरनुकूज केक पकार । कान्तगृहे गमनकार्यारम्भः पुनतत्प्रेरकः शिखिशमः कारणान्तरसम्पसिः ॥ ११ ॥ मालिनी नायिका रात्रि में जिस समय प्रियतम के घर जाने को उत्सुक हुई, उसी समय मषमेष गर्जन से सामन्दित होकर मासाद में रहने चाळे मोर भी टिप्पणी-माणिनी नापिका सही माम त्यागकर पति के समीप खाने को वाकण्ठित हुई थी कि इसमे में वर्षाकाल की सूचना देनेवाले मेघ भी धन-गर्जन कर उठे जिससे उसकी माममा करा देने वाली कामातुरता और भी बढ़ गयी । यहाँ मान-भारूप कार्य में देवयोग से इपे अनाम और मोरों की काकली के सहायक हो जाने से समाहित असार | 100 परिवृति कक्षमति परिवर्सनमर्थेन सहशासाहशेन वा ।। जायतेऽर्थस्य यत्रासौ परिवृत्तिर्मता यथा ।। १११ ॥ मनास्य सदशेनासपन वा मन परिवर्तमं परिवती बाब असी परिवृत्तिमता । यथेत्युदाहरणे ॥ १११॥

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