Book Title: Vagbhattalankar
Author(s): Vagbhatt Mahakavi, Satyavratsinh
Publisher: Chaukhamba Vidyabhavan

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Page 31
________________ वाग्भटासारः। प्रचण्डमुत्कट बन वीर्य चस्थ स संबोध्यःनिर्गतः कामाकन्दाधिकामस्तस्यामन्त्रणमा निष्कामेत्यत्र निबंदिराविप्रादुश्चतुराम्' इत्यनेन सूत्रेण भिर्शनस्प रेफ पो भवति, परमत्र चित्रायें राहुलकारपो म कृतः। तेन विसर्ग एच निकामेति : माश्चासावागमश्व प्रकाशितो महागमो येन स संबोथ्यः । मावोऽभिप्रायश्चित्तमित्यर्थः । तस्य सत्वानि भावतश्वानि अन्तरातत्त्वानि ज्ञानादीनि तेषां निधिरिद मिस्तिस्यामन्वणन् । । देव, तद भा प्रभालनतिशयेन अत्र विश्वम्रयेऽपि अमृता आश्चर्यकारिणी । मस्ति क्रियानुसापि गम्यसे. 'यधान्य क्रियापदं न सूयते तत्रास्तिर्भवतीपरः प्रयुज्यते' इति सृजूदचनप्रामाण्याद । भत्र भावनलयोक्योरक्यम् | तस छत्रस्थापनार्या स्वयं मोयम् । तथा-'चन्द्रडितम्' इत्यत्रानुस्वारेण त्रिभङ्गो न । 'निकाम-' इत्यत्र विसर्गाभ्यो न चित्रभङ्गः । याक नमनीय : मार । बिनयारखो स्तुपे वीर विनतत्रिदशेयर । इदमपि छत्रकाव्यं कचिदश्यते ॥ २५ ॥ छत्रवन्धचित्रम् (१) छत्रबन्धचित्रम् (२) नाना म म/ममाया तामाप्रमा स्वां त्रि काशित माहा गा वा नि हे प्रचण्ड बलशालिन् ! कामनाओं से रहित, शास्त्रादि को अपने ज्ञान से सवलोकित करने वाले और निखिल तस्ववेत्ता देष ! आपकी कामित अस्यम्त अनुत्त. रूपा है। ___ टिप्पणी-संख्या () छत्रधधचिन्न में 'बल' के बकार और 'भात्र' के वकार में अभेद माना गया है। संख्या (१) बम्पवित्र संस्कृत दीकास्थ श्लोक का है।

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