Book Title: Vagbhattalankar
Author(s): Vagbhatt Mahakavi, Satyavratsinh
Publisher: Chaukhamba Vidyabhavan

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Page 29
________________ १५ वाग्भटामशः। टिप्पणी-बाला से श्री बालक और बालों के बर्थ का बोध होने से यहाँ पर श्लेष है। यदि 'ब' और 'क' में अभेड़ माना जाप तो श्वेष सम्भव नहीं है। अतएव '' और '' में पहों पर कोई भेद नहीं है। २२ हले लयोरक्य यथा देव युष्मद्यशोराशि स्तोमेन अफत्मकाः । उत्कण्ठयति मां भकिरिन्दुलेखेय सागरम् ।। २३ ।। हे देव राजम् । अमेकार्थनाममालायां देवशम्दो राजार्थोऽप्यस्ति । युष्माकं यशसा राशि स्तोतुं वर्णयितुं स्वदीया भक्तिर्मामुत्कण्ठयति उत्सुनं करोति । पर्म इमं प्रत्यक्ष माम् । किंविशिष्टम् । जड मात्मा यस्य स महात्मा जसात्मैव हारमकः । स्वार्थे का प्रत्ययः । का ५न । यथा इन्दोलेवा सागरमुकण्ठयति उल्हसितं करोति । सागरमपि फिभूतम् । जहारमकं जल नीर मामा म्वरूपं यस्य स बलात्मकरन जथा। अन जहजकमायोर्डकयो काम् ॥२॥ हे देव ! आपके प्रति मेरी ओ भकि है यह मूर्खमति मुसको भाप के स्तुसिगान के लिये उसी प्रकार से उत्साहित कर रही है जिस प्रकार से चन्द्रकिरण जल से परिपूर्ण सागर को उत्तम्भित कर देती है। टिप्पणी-'जबारमकम्' शब्द के दो मिन-भित्र भर्थ है मूखमति और जलमय। अतः यहाँ पर श्लेषालंकार मामा गया है। 'जसास्माकम्' शब्द 'जलमय' का अर्थ सभी प्रकट कर सकता है जब उसे 'जलारमकम्' मान लिया जाय। इससे '' और 'कों में पारस्परिक सभेव स्पष्ट है ॥ २३ ॥ मथ चित्रे इलयारेक्यं यथा--- चन्द्रद्वितं घटुलितस्वरधीतसाररबासनं रभसकल्पितशोकजातम् । पश्यामिपापतिमिरक्षयकारकायमल्पेतरामलतपःकचलोपलोधम् ।। २४ ॥ अहं देवं पश्यामीति संटङ्कः 1 चन्द्रण सकलज्योतिश्चक्रस्वामिना डिसः स्तुतस्तम् । पुनः फिभूतम् । बटुलिसस्वरथीतसाररमासनम् । स्परशदोऽव्ययमस्ति । स्वः स्वर्गेऽधीतो विख्यातः 1 मेलरित्यर्थः । तस्य सारं रक्षमय आसनं पाण्डुकम्बलादिशिलास्थितम् । चटुलिन चलीकृतं स्वरधीतस्य मेरुशैलस्य साररवासनं येन स तम् । मौनीरेण मेरोः कम्पनात् आसनमपि कम्पसे इति 1 अथवा । स्वः स्वर्गेण स्वर्गवासिदेवजनेन अधीतं पठित व्यावर्णित सारं बलं यस्य स स्वरधीतसार इन्द्र इत्यर्थः। चलितं कम्पितं स्वरीतसारस्येन्द्रस्य रशासनं येन स सम् । परमेश्वरस्य कल्याणेपु इन्द्राणां सिंहासनानि कम्पन्त इप्ति । रमसेन वेगेन फरिपत सिनं शोकजातं असमाधिसमूहो येन ससम् । पुनः कथम्भूतम् । पाकाम्येब तिमिराणि पापतिमिरागि तेषां क्षयं करोतीति पापतिमिरक्षयकार: पापतिमिरक्षयकार: कायो देहो यस्य स ठम् । अल्पेवरं च तत् अमल चाम्पेतरामल अपेतरामधं च ततपश्च तस्मै अपेतरामलतपसे कचलो कपामा धान लोपोनयन गोप्रति व्यतीति मस्पे

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