Book Title: Vagbhattalankar
Author(s): Vagbhatt Mahakavi, Satyavratsinh
Publisher: Chaukhamba Vidyabhavan

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Page 69
________________ वाग्भटालङ्कारः। जो अन्म-मरण शादि से युक संसारचाक से परे हैं वे जब सारथी द्वारा नगर से पर्वत पर ले जाये गये हो सारथी ने उनसे बार-बार सुन्दर वचनों में कहा । टिप्पणी-'मयनो', 'जग', और 'श्मियो' भादि मध्य पदों की स्पषधामरहिस आवृत्ति से इस श्लोक में 'संयुतादृत्तिमूलक मध्यमपदमक है ।। १२ ।। अन्तयमकमाह यदुपान्तिकेषु सरलाः सरला यद भूषलन्ति हरिणा हरिणा | तदिदं विभाति कमलं कमल मुदमेत्य यत्र परमाप रमा ।। ३३ ।। यदुपानिसकेषु यस्य जलस्योपान्तिकशु पार्थेषु सरला अवक्राः सरला देवदारदो वर्तन्ते । यजळमनुरुक्षीकृत्य इरिणा मृगा परिणा वायुना सहोचन्ति । मलमस्यर्थ सदिवं कं जलं निति यत्र जले र ती काही गमा मुदमा १४ || महा! कितनी मनोहारिणी है यह जलराशि!! इसके किनारे पर सीधे-सीधे धूप (काठविशेष) के सूप खरे हुए हैं, यहाँ हरिण घायु के समान तीन वेग से दौड़ते हैं और यहाँ पर लघमी भी कमकों में स्थान पाकर इषोलास से भर जाती है। टिप्पणी-सरला', हरिया', और 'परमा' भादि अम्स पी की भापति से यहाँ पर 'संयुतावृतिमूलक सन्तपदयमक अलकार है ।। ३ ।। आदियमकमाइकान्लारभूमौ पिककामिनीनां का तारखाचं क्षमते स्म सोढुम् | कान्ता रतेशेऽध्यनि वर्तमाने कान्तारविन्दस्य मधोः प्रवेशे ।। ३४ ॥ झान्ता मार्या रतेशे मर्तरि अध्वनि पनि वर्तमाने । विवेशस्थ सतीत्यर्थः । मधोवसन्तस्या प्रवेशे कान्तारभूमी पिककामिनीना का का तारबाचं विस्तारिणी वाणी सोई क्षमते स्म । अपि तु कामपि न क्षमते स्म । कोशस्य मधीः । कान्तारविन्दरय कमनीयषप्रस्य ॥ ३४ ॥ जब किसी सुन्दरी का पति परदेश में हो (उसके पास महो), चन्नमाल कमल और वसन्तादि उहीपक उपकरणों से सजकर आ जाय तो वह घेचारी वनप्रदेश में कछफूजन करनेवाली कोकिला की कौन-सी ऊँची सान को सुन सकने में समर्थ हो सकती है? (वह तो घिरह से ताप उठेगी)। टिप्पणी-इस श्लोक के चारों पादों के मादि में 'कान्सार' पद की आयुक्ति है और ये सभी पद एक दूसरे से दूर हैं। अतः यह 'अयुतात्तिमूलक मावि पदममक' का उदाहरण है ॥ ३ ॥ मध्ययमक्रयाह चकार साहसं युद्धे धृतोझासा हसं च या । दैन्यं त्वां साह सम्प्राना द्विषां सोत्साह सन्ततिः ।। ३५॥

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