Book Title: Vagbhattalankar
Author(s): Vagbhatt Mahakavi, Satyavratsinh
Publisher: Chaukhamba Vidyabhavan

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Page 9
________________ (८) संस्कृतं प्राहृतं तस्यापभ्रंशो भूतभाषितम् । इति भाषाश्चतस्रोऽपि यान्ति काव्यस्य कायताम् ॥ संस्कृतं स्वर्गिणां भाषा शब्दशाखेषु निश्चिता । प्राकृतं तज्जन्य देश्मादिकमनेकधा । अपभ्रंशस्तु यच्छुद्धं तत्तदेशेषु भाषितम् । अद्भुतरम्यते कश्चिसद्धौतिकमिति किसिद्धौतिकमिति स्मृतम् ॥ छन्दो निवज्रमण्छन्द इति तद् वाकार्य द्विधा । पचमार्थ तदन्यच्च गथं मिश्रं च व इयम् ॥ ( २.१४ ) आचार्य वाग्भट ने दोषों को तीन भागों में विभक्त किया है - पददोष, वाक्यशेष और वाक्यार्थदोष | पदोष हैं- अनर्थकः श्रुतिकटुख, विरुद्धार्थप्रतीति, अलक्षण, स्वसङ्केतप्रक्लसार्थं, अप्रसिद्ध, असम्मत और ग्राम्य । खण्डित, भ्यस्तसम्बन्ध, असम्मित, भपक्रम, इन्द्रः शास्त्रविरुद्ध वैदर्भी, गौणी आदि रीतियों से रहितत्व, यति-भद्र और क्रियापदरहितत्व--- ये आठ बाक्मदोष गिनाये गये हैं । अर्थदोषों की गणना इस प्रकार से की गयी है— देशविरुद्ध, कालत्रिम्ब शास्त्रविरुद्ध अवस्थाविरुद्ध द्रव्यविरुद्ध और गुणकियाबिरुद्ध | साथ ही क्रमशः इन सभी दोषों के उदाहरण भी दे दिये गये है जिससे प्रत्येक 1 दोष का रूप के तृतीय परिच्छेद में गुण-दर्शन कराया गया है। सर्वप्रथम गुण के प्रयोजन का विचार किया गया है। गुण-प्रयोजन बतलाते हुये आचार्य वाग्मद कहते हैं - अदोषावपि शब्दार्थी प्रशस्येते न मैर्विना । सामिदानीं पथारिक वृमोऽभिम्बकमे तुजान् ।। ( ३- १ ) अर्थात जिन गुणों के बिना अनर्थकत्व, श्रुतिकटुत्व आदि दोषों से रहित भी शब्द और अर्थ नहीं कहे जाते, उन गुणों का यथाशक्ति वर्णन किया जाता है। इस प्रकार काव्य में शोभाधान करना ही गुणों का प्रयोजन मानना चाहिये। भामद, दण्डी और स्वयक आदि आचार्यों की भाँति वाग्भट ने भी दश गुणों को स्वीकार किया है-औदार्य, समता, कान्ति, अर्थव्यक्ति, प्रसाद, समाधि लेप, ओज, माधुर्य और सुकुमारताये दश गुण गिनाये गये हैं । " चतुर्थ परिछेद में केवल अलङ्कारों का ही वर्णन है। दोषरहित गुणयुक्त काव्य भो तब तक मन को नहीं माता जब तक वह उचित अलङ्कार जागरण से अलंकृत न हो। इस दृष्टि से काव्य में अलङ्कारों की वही उपावेक्ता है जो एक सुन्दरी के लिये आभूषणों की। अलङ्कार दो प्रकार के माने गये हैं- शब्दालङ्कार और अर्थालङ्कार | शब्दालङ्कार चार हैं - चित्र, वक्रोक्ति, अनुप्रास और यमक जाति, उपमा, रूपक, प्रतिवस्तूपमा, भ्रान्तिमान आक्षेप, संशय, दृष्टान्त, व्यतिरेक, अपति, तुल्ययोगिता, उत्प्रेक्षा, अर्थान्तर

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