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जिसका आधार टीका और चूणि हैं। विद्यार्थियों के व्याकरण-विषयक ज्ञान को सुदृढ़ बनाने के लिए शब्दों की व्याकरण द्वारा सिद्धि भी की गई है। इस ग्रंथ के संकलक हैं - मुनि विमलकुमार । २. व्याकरण साहित्य
तुलसी मञ्जरी (प्राकृत व्याकरण)-गणाधिपति श्री तुलसी के नाम पर आचार्यश्री महाप्रज्ञ की कृति है। इसका रचना काल वि० सं० १९८८ है। यह आचार्य हेमचंद्र के प्राकृत व्याकरण की एक वृहत् प्रक्रिया है। अष्टाध्यायी का क्रम विद्यार्थी के लिए सहजगम्य नहीं होता। उसके लिए प्रक्रिया का क्रम अधिक उपयोगी होता है । प्रक्रिया में शब्दों के सिद्धिकारक सूत्र पास-पास मिलने से विद्यार्थी को समझने में सुगमता होती है । उदाहरण स्वरूप प्राकृत का एक शब्द है ‘मरहट्ठ'। इसका संस्कृत रूप है महाराष्ट्र । मरहट्ठ शब्द को सिद्ध करने के लिए आचार्य हेमचन्द्र के प्राकृत व्याकरण के दो सूत्र लम्बे व्यवधान पर हैं-१/६९ और २/११९ तुलसी मंजरी में वे दोनों सूत्र पास-पास में हैं । इस कृति में अपेक्षित टिप्पण भी दिए गए हैं। सूत्रों में आगम प्राकृत शब्दों की संस्कृत छाया भी दी गई है। प्रक्रिया की दृष्टि से संधिप्रकरण, स्वरान्त पुल्लिग, स्वरान्त स्त्रीलिंग, स्वरान्त नपुंसक लिंग, युष्मदस्मत् प्रकरण, अव्यय प्रकरण, स्त्रीप्रत्यय प्रकरण, कारक प्रकरण, समास प्रकरण, तद्धित प्रकरण, लिंगानुशासन, गण प्रकरण, भिन्नत प्रकरण, भावकर्म प्रक्रिया प्रकरण, कृदन्त प्रकरण आदि के रूप में सूत्रों का वर्गीकरण किया गया है। तेरापंथ धर्म संघ में इसके माध्यम से प्राकृत भाषा के अध्ययन अध्यापन का क्रम चालू है । इसके सम्पादक हैं- मुनि श्रीचन्दजी 'कमल' । प्राकृत वाक्य रचना बोध
आचार्य महाप्रज्ञ की यह दूसरी कृति है। इसमें प्राकृत भाषा का अध्ययन करने की दृष्टि से व्याकरण के अनुरूप वाक्य रचना दी गई है। हिन्दी से प्राकृत और प्राकृत हिन्दी रचना का क्रम दिया है। विभिन्न प्रकार के नए-नए शब्दों और धातुओं का भी यथास्थान बोध कराया गया है। इससे विद्यार्थी की प्राकृत भाषा में प्रवेश सम्बन्धी आने वाली कठिनाइयां स्वत: समाप्त हो जाती हैं। इसमें सात परिशिष्ट हैं । इसके भी सम्पादक हैं-मुनि श्रीचन्द 'कमल' । ३. कोश निर्माण
अब तक निम्नलिखित ९ कोश प्रकाशित हो चुके हैं(१) आगम शब्दकोश (२) एकार्थक कोश (३) निरुक्त कोश (४) देशी शब्द कोश (५) आगम वनस्पति कोश
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तुलसी प्रज्ञा
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