________________
पश्चात् सृष्टि का चक्र, अनादि अनन्त होते हुए प्रवाह से शाश्वत है। यही वैज्ञानिक दृष्टिकोण है कि सृष्टि में पदार्थ व ऊर्जा की मात्रा स्थिर है। इनका कभी विनाश नहीं होता, अवस्था में परिवर्तन होता है। कभी न घटती है, न बढ़ती है। वैदिक और जैन दृष्टिकोण में यह अन्तर है कि जैन दृष्टि सृष्टि को शाश्वत मानती है, प्रलय को नहीं मानती है । वैदिक दृष्टि सृष्टि को प्रवाह से शाश्वत मानती है और प्रलय को भी सृष्टि समान अवधि एक-एक कल्प का मानती है।
एक कल्प की सृष्टि, एक कल्प का प्रलय की अवधि को ब्रह्मा का दिन रातअहोरात्र वैदिक दृष्टि है । ३० ब्राह्म अहोरात्र का एक ब्राह्म मास, १२ ब्राह्म मास का एक ब्राह्म वर्ष तथा १०० ब्राह्म वर्ष (सूर्य सिद्धान्त १-२१) ब्रह्मा की आयु है। वर्तमान २९वां श्वेत वाराह कल्प ब्राह्म मास का प्रथम दिन है। इससे पहले २८ कल्प व्यतीत हो चुके हैं। इस प्रकार का उल्लेख भारतीय शास्त्रों में पाया गया है (डॉ० सोलंकी)। ब्रह्मा की आयु ही मोक्ष की अवधि है, इसे मुण्डक उपनिषद् (३-२-६) महाकल्प या परान्तकाल कहता है। मेरे विचार से इस सीमित आयु वाला ब्रह्मा सृष्टि व प्रलय कर्ता नहीं हो सकता है । सृष्टि, प्रलय, वेदकर्ता तो कोई अजर, अमर, सर्वज्ञ, सर्वव्यापी, अनादि, अनन्त, सर्व शक्तिमान् स्रष्टा ही हो सकता है जिसे वैदिक दृष्टि परमात्मा आदि नामों से पुकारती है । गणित की परिभाषा में परमात्मा, God, खुदा आदि नाम वाले की परिभाषा है कि परमात्मा एक वृत्त के समान है जिसका केन्द्र सब जगह पर है परन्तु उसकी परिधि कहीं नहीं है। वह अनन्त है। सर्वव्यापी है, कणकण वासी है, ज₹-जर्रे में निहां है ।
विज्ञान मानता है कि सृष्टि परिवर्तनशील है। ऋग्वेद मंत्र (१०-५०-५) कहता
देवस्य पश्य काव्यं महित्वाऽद्या ममार स ह्यः समान । कि परमात्मा की कृति सृष्टि को देख जो आज मरती है कल जन्म लेती है। सृष्टि में जन्म-मृत्यु का चक्र चल रहा है । सृष्टि की हर अवस्था, हर रूप में हर समय परिवर्तन दिखाई दे रहा है। दिन के पश्चात् रात, रात के पश्चात् दिन, परिवर्तन का यह चक्र चल रहा है । अहोरात्र का यह चक्र अनादि अनन्त, जैन दृष्टि है। वैदिक दृष्टि इस अहोरात्र के चक्र को प्रवाह से अनादि अनन्त शाश्वत कहती है । विज्ञान की यह मान्यता है कि जहां परिवर्तन है, वह कभी न कभी प्रारम्भ हुआ होगा तथा उसका अन्त भी होगा। अहोरात्र सूर्य से होते हैं तो सूर्य भी सांत है। वर्तमान से पहले १९६०८५३०९७ वर्ष पूर्व श्वेत वाराह कल्प, सष्टि कल्प २९वां कल्प, चैत्र शुक्ला प्रतिपदा रविवार के दिन सूर्योदय के क्षण शुरू हुआ था। वर्तमान में सृष्टि दिन का दोपहर नहीं हुआ है, होने वाला है। प्रलय होने में अभी दो प्रहर से कुछ अधिक समय शेष है (संकल्प सूत्र)।
वैदिक दृष्टि जड़ सृष्टि के दो रूप मानती है, व्यक्त और अव्यक्त, सृष्टि और प्रलय, दृश्य और अदृश्य, कार्य और कारण । जो कुछ हमारी ज्ञानेन्द्रियों से अनुभव होता है, जो प्रत्यक्ष है, जो दृष्टि में है, कुछ पास है, कुछ दूर है, कुछ परोक्ष है, कुछ २२६
तुलसी प्रज्ञा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org