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सक्कभणिएण हरिणेगमेसणा गब्भविण मिउं काउं।
आसोयकसिणतेरसि, निसायतं नाहं साहरिउ ॥१३॥ इसलिए इन्द्र ने हरिणगमेषी देव को गर्भ-विनियम करने को कहा और आसोज कृष्णा त्रयोदशी रात्रि को उसने प्रभु का संहरण कर गर्भ विनिमय कर दिया।
खत्तियकुंडग्रामे, जाओ चित्तसियतेरसि निसद्धे ।
कासवगुत्ते कणगाभ कन्नरासीइ सीहं को ।।१४।। फिर वह देव क्षत्रिय कुंड ग्राम में चैत्र शुक्ल त्रयोदशी रात्रि को उत्पन्न हुआ तो उस सिंह चिह्नित बालक का गौत्र कश्यप, वर्ण सुवर्ण और जन्म राशि कन्या थी।
जिण चिंतामणि तुमए, अवइन्ने रयण जणधण कणेहिं ।
बुढित्था नायकुलंति, वद्धमाणो त्ति तोसि फुडं ॥१५॥ हे जिन ! आप चिन्तामणि रत्न के समान हैं। आपके अवतरित होने से ज्ञातकुल में रत्न, जन, धन, धान्य की वृद्धि हुई है। इसलिए आप वर्द्धमान नाम से प्रसिद्ध हुए।
तं जम्मज्जण खणंमि, सक्क कुवियप्पसंकु मुक्खणिउ।
जेण महंतमवि गिरि, मीरत्थ तओ महावीरो ॥१६॥ जन्म-मज्जन समय इन्द्र ने शंका की कि यह बालक कैसे मज्जन-स्नान को सह पायेगा-इस कुविकल्प को प्रभावहीन करने के लिए जिसने बड़े पर्वत को कंपित किया वह प्रभू ! देवताओं द्वारा 'महावीर' कहा गया।
पियरमरणे वि तं जिट्ट, भाउवयणेण ठासि वासदुगं ।
गिहवासि च्चिय निरवज्ज वित्तिणा निच्छिय मुणिव्व ॥१७॥ माता-पिता की मृत्यु के बाद भी बड़े भाई के कथन पर महावीर दो वर्ष और गृहवास में रहे किन्तु उस दौरान वे मुनि की तरह निरवद्य वृत्ति से जीवन-यापन करते रहे।
सत्तकरदेह गेहंमि, अच्छिउं तीस वच्छरे कुमरो।
लोगंतिय तोरेविओ संवच्छरमिच्छियं दाउं ॥१८॥ उनका शरीर सात हाथ का था। वे तीस वर्ष तक घर में रहे। फिर लोकतांत्रिक देवों से प्रेरित होकर उन्होंने संवत्सरी दान किया।
सुरनर वय कय बहु विह, जलन्हवणो सुरविलेवण विलितो।
रुइरालंकार धरो, चउदेव निकाय समणगओ ॥१९॥ क २
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