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इस प्रकार हे वीर जिन सूर्य ! तुम मोहरूपी अन्धकार का नाश करने वाले हो, भव्य जीव रूप कमल की शोभा बढ़ाने वाले हो और उसके दोष समूह का उच्छेद करने वाले हो वैसे ही तुम्हारी स्तुति करने से मुझे कुशलानुबधि पुण्य की प्राप्ति हुई है। मैं उसकी पुन:-पुनः याचना करता हूं। मैं जिनवल्लभ सदा तुम्हारे चरणों में नमस्कार क
इति श्री महावीर चरित्रं समाप्तं ॥ कृतिरियं श्री जिनवल्लभ सूरीणां । शुभंभवतु । कल्याणमस्तु । पं० अभय माणिक्य मुनिना लेखि वेन्नातट नगरे ॥
तुलसो प्रक्षा
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