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कन्ने सुकड सलागा, पवेसगे अभिनिवेसगे गावे । - खरगेयतदुद्धरगे, तुह तुल्ला चेव मण वित्ती ।।२६।।
कानों में शलाका डालने वाले गवालियों के प्रति भगवान् को क्रोध नहीं आया और उन शलाकाओं को निकालने वाले खर वैद्य के प्रति उनके मन में राग भी पैदा नहीं हुआ । दोनों स्थितियों में भगवान् की मनोवृत्ति एक जैसी रही।
छ चउति दुगेगमासे, दुगनव दु छक्क बारसम अकासी। अद्ददिवढड्डाई मासे बावत्तरी दो दो ॥२७॥
भगवान् ने एक पाण्मासिक, दो चातुर्मासिक, तीन त्रैमासिक, छह द्विमासिक, बारह एक मासिक, दो डेढ़ मासिक तथा दो ढाई मासिक तप किए। कुछ ७२ पक्ष (पखवाड़े) तप किया।
दुचउदसदिणा पडिमा, भद्दमहाभद्द सव्वओ भद्दा ।
कासि अछिन्ना तह, बारसेग राइ ति देवसिया ॥२८॥ भगवान् ने भद्र, महाभद्र और सर्वतोभद्र प्रतिमाएं बनाई। भद्र प्रतिमा दो दिन, महाभद्र चार दिन और सर्वतोभद्र प्रतिमा दस दिन की होती हैं। उन्होंने तीन दिन प्रमाण एक रात्रि की प्रतिमा बारह बार की। अर्थात् तेले की तपस्या में कायोत्सर्ग किया।
पंचादिणण छ मासिय खवणं कोसंबिए तुम मकासी ।
दुन्निसए गुणतीसे, अकासितं छठ खवणाणं ॥२९॥ उन्होंने कौशाम्बी में पांच दिन कम पाण्मासिक तप किया। कुल २२९ छठी तप (दो दिन के बेले) किए।
दिवसट्टसया पारणया पढमवयदिणं चेगं ।
इय तेरस पक्खाहिय बारस बरिसावसाणे ते ॥३०॥ भगवान् ने दीक्षा दिवस से बारह वर्ष और तेरह पक्ष बीतने तक कुल ३४९ पारणे किए।
जंभिय बहिरज्जुवालिय, तीरवयसाहसियदसमि पहरविगे।
छठेणुक्कुडिय ठियस्स, केवलं आसि सालितले ॥३१॥ उन्हें जम्भिका नगरी के बाहर ऋजुबालिका नदी के किनारे शालिवृक्ष के नीचे ऊकडू आसन (वीरासन) में बैठे वैशाख शुक्ला दशमी को दिन के तीसरे प्रहर में केवलज्ञान का लाभ हुआ। बन्द २३, अंक २
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