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पुस्तक-समीक्षा
जागतीजोतो (कविता संग्रह)-श्री गिरिधारीसिंह पड़िहार,
प्रकाशक-पड़िहार प्रकाशन, कोरियों का मोहल्ला, बीकानेर-३३४००१ मूल्यतीस रुपए, संस्करण-१९९७ ।
विक्रम संवत्सर की इक्कीसवीं सदी के शुभारंभ पर आज से लगभग ६० वर्ष पूर्व राजस्थानी कविता के प्रति देश में एक उत्साहवर्धक ललक जन्मी थीं। उसका दूसरा वेगवान् प्रवाह सन् १९५७-५८ के आसपास आया। इस दूसरे प्रवाह में क्षेत्रीय स्तर पर बीकानेर के अनेकों युवकों की वाणी मुखर हुई और उन्हें प्रोत्साहन भी खूब मिला।
___श्री गिरधारीसिंह पड़िहार को उनके अनुज की धर्मपत्नी ने प्रेरणा दी और रानी लक्ष्मीकुमारीजी की 'मांझल रात' को पढ़कर वे इन कविताओं का सृजन कर सके-यह अनूठी बात है। वे लिखते हैं कि 'स्वाभिमान अर आजादी २ वास्त जूझण आले मोट्यारां पर कुंयी इतिहास, पुराण-अर लोक गीतां रो आधार लेर * कवितावां लिखी है।' इसलिए इन में इतिहास की पारदर्शिता, कल्पना भी अनठी उड़ान और रंजक भावों की अतिशयता न भी हो तो देश और समाज में वीरों के प्रशस्तिगान को समृद्ध बनाने में ये कविताएं समर्थ दीख पड़ती हैं । कवि की कतिपय उक्तियां बेजोड़ बन पड़ी हैं१. 'मेघनाद' - कविता में लक्ष्मण को कही मेघनाद की कटूक्ति देखिए
ओ राख भरोसो तूं लिक्षमण, सीता नै सोरी राखांला । रघुवस्यां हलकी करी जियां,
म्हे कान नाक नयीं काटाला॥ २. मेघनाथ-की दूसरी कटूक्ति अपने चाचा विभीषण के लिए है, देखिए
हो राजमुकट रो कोड घणो, काका तूं पहली के देतो। हूं कर देतो युवराज तने,
अधिकार म्हारलो ले लेतो॥ ३. 'पाबूजी' - कविता में अध ब्याही अपनी रानी द्वारा सहनाणी मांगने पर
पाबूजी का कहना कि
थारै मनड़े रो सुवटियो, म्हारोड़ो सुख दुख कह देसी। आ सैनाणी दुःख में मुरझे, सुख में सोरी सांसां लेसी।
बनकर
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