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वायुयान आदि जब मुड़ते हैं तो मोड़ की अन्दर की तरफ झुक जाते हैं। बाहर वाले पहिए कुछ उठ जाते हैं। सोचने पर यह सब अचरज सा प्रतीत होता है। वक्रता पर झुकना प्रकृति सिखाती है। वक्र मोड़ पर = १० स्थिरांक (Consraut) जब V तथा R, वेग व वक्रता की त्रिज्या दोनों सेन्टीमीटर में हों इस नियम का पालन करना होता है । यदि वेग V अधिक है तो R भी अधिक होना चाहिए। मोड़ पर इस नियम का पालन न करते ही दुर्घटना होगी। जीवन पथ में वक्र मोड़ पर प्रकृति झुकना सिखाती है । प्रकृति की अनुकूलता में ही सुख है, विपरीतता में कष्ट है, दुःख है, दुर्घटना है। शायर चेतावनी देता है
यही आईने कुदरत है, यही दस्तूरे गुलशन है। लचक जिनमें नहीं होती, वह शाखें टूट जाती हैं ।
-(प्रोफेसर प्रतापसिंह) १३६ सहेली नगर उदयपुर (राज.) पिन-३१३००१
खण्ड २३, अंक २
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