________________
विद्वानों ने तीन की संख्या को अति महत्वपूर्ण माना है, यथा तीन देव, तीन महाशक्तियां, तीन स्वर, तीन लोक, तीन ग्राम, नृत्याक्षा तीन, त्रिभंगी मुद्रा आदि ।
तीनों लोकों नाम हैं -अन्तरिक्ष लोक, भू लोक मानव लोक । मानव लोक के स्वर मध्य सप्तक अन्तरिक्ष लोक के तार सप्तक और भू लोक के मन्द्र सप्तक के है । काया पिण्ड में स्थित है । सजीव पदार्थों में पेड़-पौधों का सम्बन्ध भू लोक से पशु पक्षियों का का सम्बन्ध अन्तरिक्ष लोक से तथा मध्य सप्तक का सम्बन्ध मानव लोक से है । मानव शरीर की तीन स्थितियों पर विचार करते है तो उनसे ध्वनियों का सम्बन्ध निम्न प्रकार पाया जाता है
काया
कंठ से मस्तिष्क तक
मानव
दस वर्ष के बाद की
अवस्था जागृतावस्था
स्वप्नावस्था
इन तीनों अवस्थाओं में स्वर लहरी का प्रभाव मानव शरीर पर पड़ता है । इसी प्रकार संगीत का प्रभाव पशु-पक्षियों एवं पेड़-पौधों पर भी होना निश्चित है ।
जंगल में खड़े पेड़-पौधों को लोक-संगीत की स्वर लहरी सुनने को विशेष तौर पर मिलती है । जैसे यात्रा गीत ( बणजारा, रामू, चनणा, किसानों के गीत, साधु-संतों के गीत ) आदि ।
लोक-संगीत की स्वर लहरी अपने चारों ओर के वातावरण प्रदूषण को दूर करती है ।
पेड़-पौधों को प्रभावित करने वाले स्वर वंशी की टेर, अलगोजो की गूंज, सपेरे की बीन, रावणहत्था आदि है । इनके अतिरिक्त शंख, नगारा, ढोल, ढोलक, भेर आदि ताल एवं स्वर वाद्यों की ध्वनियां भी प्रभवित करती है ।
आभामंडल मार्ग द्वारा एक शहर से दूसरे शहर को आकशवाणी, दूरदर्शन आदि साधनों द्वारा प्रसारित की जाने वाली स्वर लहरी को पेड़-पौधों में अपनी तरफ खींचने अभूतपूर्व शक्ति होती है । वे अपने मन पसन्द की धुनों को ग्रहण कर उसका आनन्द प्राप्त करते रहते हैं । उन्हें पशुओं के गने में बन्धी घंटियों के अतिरिक्त सुबहशाम पक्षियों का मधुर संगीत भी प्रभावित करता है। चिड़ियों की चहचहाट सम्बन्धी ध्वनि का आनन्द मानव के साथ-साथ पेड़-पौधे भी लेते हैं ।
मरूधरा के पेड़-पौधों का गहराई से अध्ययन करने पर पाया जाता है कि जिस प्रकार इनमें देवी-देवताओं का निवास है, उसी प्रकार सप्त स्वरों का भी निवास हैषडज ऋषभ गंधार मध्यम पंचम धवत निषाद खेजड़ा नीम जाल तुलसी बोरटी
स्वर पेड़ पौधे
मतीरा फोग
देवी देवता भैरव विष्णू गोगाजी लक्ष्मी देवी (शक्ति) इंद्र गवरजा शास्त्रीय संगीत के विद्वानों ने स्वरों का निवास जिन पेड़-पौधों में माना है,
खण्ड २३, अंक २
२४३
अवस्था
Jain Education International
पांव
पेड़
तालिका
कमर से कंठ तक
गर्भावस्था
३ वर्ष तक निद्रावस्था
पशु
गर्भ से बाहर
१० वर्ष तक
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org