Book Title: Tulsi Prajna 1997 07
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 60
________________ हैं-एक तो समझने में आसानी रहेगी तथा दूसरे एक ही नजर में सभी क्रमों को एक साथ देखा जा सकता है । इसके अतिरिक्त सबसे अधिक एक विशेषता यह है कि इसमें सम्यक्त्व से सम्बन्धित कई बारीकियों को भी सम्मिलित कर लिया गया है। फिर भी कुछ बातें पूरी तरह स्पष्ट नहीं हो पाई है। इनका खुलासा अगले अनुच्छेद में कर रहे Ayog Kama Sayog karak Mannkuney... pahent Kanney Sukatmeompnya Animation Amavataran Aprumen-enyat. Pramat-sanye Savyataranyata Kahayk Samyakorenu Kahayepesham Samyakraheb Upahem samyandriane Miune Sasuden. Sad Michael Anadi Mithyadraht POSSIBLE TRANSITIONS BETWEEN SPIRITUAL LEVELS चित्र (३) गुणस्थानों के चढ़ने-उतरने का क्रम सम्यक्त्व के प्रकार सम्यक्त्व के तीन भेद किये गये हैं--(१) औपशमिक, (२) क्षायोपशमिक, (३) क्षायिक । औपशमिक सम्यक् दर्शन दो प्रकार का होता है - (१) प्रथम उपशम सम्यक्त्व तथा (२) द्वितीय उपशम सम्यक्त्व । मिथ्यात्व गुणस्थान (पहले गुणस्थान) में दर्शन मोह का उपशम करने से जो सम्यक्त्व पैदा होता है वह प्रथमोपशम सम्यक्त्व कहलाता है । प्रथमोपशम सम्यक्त्व अनादि तथा सादि दोनों मिथ्यादृष्टि को प्राप्त हो सकता है । यह सम्यक्त्व चौथे से लेकर सातवें गुणस्थान तक होता है। क्षयोपशम सम्यक्त्व सादि तथा मिश्र गुणस्थानवर्ती को हो सकता है, लेकिन अनादि मिथ्यादृष्टि को नहीं हो सकता है । यह सम्यक्त्व भी चौथे से सातवें गुणस्थान तक होता है। इस सम्यक्त्व के साथ सातवें गुणस्थान में रहते हुये जीव यदि उपशम श्रेणी की ओर उन्मुख होता है तो वह क्षयोपशम सम्यक्त्ब से औपशमिक सम्यक्त्व को प्राप्त हो सकता है। इस ओपशमिक सम्यक्त्व को द्वितीयोपशम सम्यक्त्व कहते हैं । यह सम्यक्त्व सातवें गुणस्थान से ग्यारहवें गुणस्थान तक रहता है । द्वितीय उपशम सम्यक्त्व का धारक जीव जब ऊपर के गुणस्थानों से नीचे छठे, पांचवें या चौथे गुणस्थान में गिरता है, तब भी वह इस सम्यक्त्व के साथ ही होता है। खण २३, अंक २ २१७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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