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ज्ञानबाजी तथा गुणस्थान
श्वेताम्बर परम्परा में 'ज्ञानबाजी' बनाने का प्रवचन बहुत प्राचीन है । चातुर्मास के समय साधु एक ही स्थान पर रहते हैं । कुछ दीक्षार्थी कम उम्र के भी होते रहे हैं। ऐसे दीक्षार्थियों को खेल के साथ-साथ ज्ञान की बातें बताने के लिए सांप-सीढ़ियां बनाई जाती थी । इस प्रकार कमसिन दीक्षार्थियों का मनोरंजन भी होता था तथा ज्ञान की बातें भी सीख लेते थे। चूंकि इस खेल में ज्ञान की बातें सीखने को मिलती हैं, अतः ज्ञान के इस खेल को 'ज्ञानबाजी' कहा जाता है।
____ ज्ञानबाजी वस्तुतः सांप-सीढ़ी का खेल है जिसमें अनेकों वर्ग (खाने) बने होते हैं । कुछ खानों पर अच्छे कार्य दर्शाये होते हैं तथा कुछ खानों पर बुरे कार्य । यदि पासा बहुत अच्छे खाने पर पड़ता है तो सीड़ी चढ़ जाता है और यदि पासा अधिक बुरे काम वाले पर पड़ता है तो सांप द्वारा काटे जाने से नीचे आ जाता है । वस्तुतः इस प्रकार की सांप-सीढियों या ज्ञानबाजियों का मुख्य उद्देश्य अच्छे कार्य का अच्छा फल तथा बुरे कार्य का बुरा फल बताना रहा है ।
सांप-सीढ़ी हमेशा एक ही प्रकार की बनती रही है, ऐसा नहीं है। अलग-अलग विषयों के लिए अलग-अलग सांप-सीढ़ियां बनती रही हैं। इन सांप-सीढ़ियों में खानों की संख्या में भी परिवर्तन होता रहा है तथा खेलने के नियमों में भी। कई बार सांपसीढ़ियां कठिन विषयों को लेकर भी बनाई जाती थीं । गुणस्थानों के चड़ने तथा उतरने के क्रम को समझाने के लिए भी सांप-सीढ़ियां (ज्ञानबाजी) बनाई जाती रही हैं। इस प्रकार की एक सांप-सीढ़ी (ज्ञानवाजी) 'लालभाई दलपतभाई म्यूजियम' (अहमदाबाद) में मौजूद है । यह ज्ञानबाजी सन् १८११ ई० की है । इसी प्रकार की एक अन्य ज्ञानबाजी अहमदावाद के ही 'कलिको म्यूजियम ऑफ टैक्सटाइल' में मौजूद है जो कि सन् १८३३ ई० की है। इसी प्रकार की कुछ अन्य ज्ञानबाजीयां मौजूद हैं। लेकिन ये सब विषय को अच्छी तरह स्पष्ट नहीं कर पाती है। इन ज्ञानबाजीयों से गुणस्थानों के नाम आदि का प्रारंभिक ज्ञान तो हो पाता हैं, लेकिन गुणस्थानों के चढ़ने-उतरने के क्रम को इनसे समझना आसान नहीं है। माडिया की सांप-सीढ़ी
___ गुणस्थानों के चढ़ने-उतरने के क्रम को समझाने के लिए श्री के० वी० माडिया ने भी एक संशोधित सांप-सीढ़ी बनाई है। इस सांप-सीढ़ी को उन्होंने अपनी पुस्तक "दी साईन्टीफिक फाउंडेशन्स ऑफ जैनिज्म' में प्रकाशित किया है । यह सांप-सीढ़ी अन्य सांप-सीढ़ियों की तुलना में छोटी है, उसमें कुल सोलह खाने हैं । इसके खेलने के नियम भी कुछ भिन्न हैं । इसका पासा धन न होकर सिक्का है जिसमें एक हैड़ (ऊपरी सिरा) तथा दूसरा टेल (निचला सिरा) है । हैड़ आने पर दो अंक प्राप्त होते हैं तथा टेल आने पर एक अंक । इस सांप-सीढ़ी की नकल चित्र (१) में दिखाई गई
इस सांप-सीढ़ी के हिसाब से जीव सातवें गुणस्थान से गिरकर दूसरे में, ग्यारहवें
तुलसी प्रशा
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