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इनका लक्षण शाङ्गदेव ने अपने ग्रन्थ 'संगीत रत्नाकर' में किया है। रति, क्रोध, उत्साह, भय, शोक, विस्मय तथा निर्वेद के आलम्बन तथा आश्रय जिस प्रकार भिन्न-भिन्न हैं उसी प्रकार हास्य तथा जुगुप्सा में नहीं। वहां मात्र आलम्बन की ही प्रतीति होती है । अत: आश्रय की प्रतीति के लिए किसी द्रष्टा विशेष पुरुष का आक्षेप किया जाता है।
सन्दर्भ :
१. काव्यप्रकाश---चतुर्थ उल्लास २. रसगङ्गाधर --- प्रथम आननम् ३. तदैव ४. दशरूपकम् (धनञ्जय) चतुर्थ प्रकाश ५. काव्यप्रकाश-चतुर्थ उल्लास (कारिका ४७)
-डॉ० लज्जा पन्त हनुमानगढ़, तल्लीताल नैनीताल (उ०प्र०) २६३००२
खण्ड २३, अंक २
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