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४. स्वतंत्र कृतियां
यद्यपि प्राकृत भाषा में निबद्ध गद्य, पद्य कृतियों की संख्या अल्प है फिर भी इस दृष्टि से जो साहित्य लिखा गया है वह इस प्रकार है :
(१) अत्तकहा
यह कृति शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की है जो प्राकृत भाषा में द्वात्रिशिका के रूप में निबद्ध है । इसमें जीवनगत संस्कारों, विचारों, उपदेश आदि का सम्यग् निरूपण हुआ है। इसे एक अनुभव कृति कहा जा सकता है ।
(२) पाइयपडिबिबो
यह कृति मुनि विमलकुमार की है। इसमें तीन चरित्र काव्यों का समावेश है –ललियंगचरियं देवदत्ता और सुबाहुचरियं । यह कृति जैन विश्व भारती द्वारा प्रकाशित है ।
(३) पाइयपच्चूसो -
यह कृति भी मुनि विमलकुमार की है। इसमें भी तीन चरित्र काव्यों का समावेश हैं - बंकचूलचरियं, पएसिचरियं और मियापुत्तचरियं । यह भी जैन विश्व भारती द्वारा प्रकाशित है ।
(४) पाइयकहाओ --
यह गद्य कृति साध्वी कंचनकुमारीजी की है। इसमें प्राकृत भाषा में निबद्ध ११६ लघु कथाएं हैं। जो प्राकृत भाषा सीखने वाले विद्यार्थियों के लिए उपयोगी है । इसका सम्पादन जैन विश्व भारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के प्राकृत विभाग के प्रवक्ता डॉ० हरिशंकर पांडेय ने किया है । यह पुस्तक आदर्श साहित्य संघ द्वारा प्रकाशित है ।
(५) पियंकर कहा
मुनि विमलकुमार द्वारा रचित यह गद्य कृति है । इस कृति में उपसगंहर स्तोत्र के अधिष्ठाता राजा प्रियंकर के जीवन-प्रसंगों को प्राकृत भाषा में निबद्ध किया गया है ।
(६) थूलीभद्दचरियं ---
जैन शासन के प्रभावक आचार्य स्थूलिभद्र ने कोशा गणिका के यहां चातुर्मासिक प्रवास करके संयम साधना की थी । प्रस्तुत काव्य में उनके जीवन-चरित्र को रूपायित किया गया है । इसके चार सर्ग हैं । श्लोक संख्या ४१० हैं । इस कृति के रचयिता भी मुनि विमलकुमार हैं ।
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खंड २३, अक २
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