Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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ब्रह्मचारी जीवराज गौतमचंद दोशीजीका
जीवन-दर्शन
अपने धार्मिक जीवनसे जिन्होंने सत्य धर्मका दर्शन कराया और जिहोंने सर्वस्वका उदार और अपूर्व दानका फलस्वरूप उदात्तध्येय प्रेरित " जैन संस्कृति संरक्षक संघ " स्थापन किया वे पू. ब्र. जीवराज गौतमचंद दोशी इस जीवनचरितके नायक हैं।
ब्र. जीवराजभाईका शुभ जन्म इ. स. १८८० में सोलापुरके भारतविख्यात दोशी कुटुंब में हुआ है । यह कुटुम्ब वही है जिसकी गत दो पीढियोंमें उत्पन्न हुआ अनेक सुप्रसिद्ध परोपकारी, धनविद्यासंपन्न समाजहितैषी और धर्मिष्ठ पुरुषोंने आर्थिक, औद्योगिक, धार्मिक, सामाजिक और शैक्षणिक आदि विविध क्षेत्रोंमें अपने अजरामर कार्यसे अपरंपार प्रसिद्धि पाई है। जिस कुलमें स्व. हिराचंद नेमचंद जैसे श्रेष्ठ समाजसेवक और अनेक संस्थाओंके जनक, स्व. वालचंद हिराचंद जैसे अग्रगण्य राष्ट्रिय उद्योगपति, प. पू. क्षु. कंकूबाई जैसी धर्मचंद्रिका, स्व. रावजी सखाराम जैसे धर्मवीर, आदि महान् व्यक्तियोंका जन्म हुआ उसी दोशी कुलमें ब्र. जीवराजभाईका जन्म हुआ।
इस कुटुम्ब का प्राचीन निवासस्थान फलटण, ( जिला सातारा ) था । नेमीचन्द निहालचंदजी व्यापार निमित्त फलटण छोडकर शोलापुरमें आकर रहे । उनके ज्येष्ठ पुत्र ज्योतिचन्द्रजी बडे व्यापारकुशल, शान्तस्वभावी और गंभीरप्रकृति थे तथा सार्वजनिक और धार्मिक कार्योमें उत्साहसे भाग लेते रहे । इनके कोई सन्तान नहीं हुई । अपने भतीजे जीवराजभाई पर ही इनका पुत्रवत् प्रेम रहा । संवत् १९६१ में मैंदरगी ग्राममें इनका देहान्त हो गया। नेमीचन्दजीके द्वितीय सुपुत्र गौतमचंदजी हमारे चरितनायक जीवराज भाईके पिता थे । यह कौटुम्बिक संबंध निम्न वंशवृक्षसे सुस्पष्ट हो जाता है।
निहालचंद भीमजी दोशी
नेमीचंद
ज्योतिचन्द
गौतमचन्द
सखाराम
हीराचन्द
चतुरबाई जीवराज
रावजी
- - कंकूबाई, माणिकचन्द, जीवराज, वालचन्द, गुलाबचन्द, रतनचन्द, लालचन्द
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