________________
तेरापंथ का राजस्थानी गद्य साहित्य
तेरापंथ का विपुल गद्य साहित्य है । उसे मुख्य रूप से निम्न विधाओं में बाँटा जा सकता है
१ ख्यात
२ टब्बा
३ वार्तिकाएं
४ रसा कसा
५ हुंडी
६ सिद्धान्तसार
७ मरजादा
८ लिखत
९ हाजरी, टहूको
१० उत्तराधिकारपत्र
११ तत्त्व बोध, बोल थोकड़ा
ख्यात
१२ चर्चा प्रसंग
१३ ध्यान
१४ कथा-कहानी
१५ परिसंवाद
१६ गद्य - कविता
१७ संस्मरण
१८ सिखामण
१९ प्रकीर्ण-पत्र
२० बख्शीस पत्र
२१ संदेश - पत्र आदि
मुनि सुखलाल
केवल प्रत्यक्ष द्रष्टा
कि उनके द्वारा सौ
तेरापंथ की 'ख्यात' का विधिवत् लेखन चतुर्थाचार्य जयाचार्य के युग में शुरू हुआ। इसके प्रमुख स्रोत थे मुनिश्री हेमराजजी तथा प्रमुख लेखक थे मुनिश्री कालूजी । मुनिश्री हेमराजजी आचार्य भिक्षु के न ही थे अपितु प्रमुख सहयोगी शिष्य भी थे । यही कारण है वर्षों के अंतराल के बाद लिखे जाने के बावजूद भी णिक दस्तावेज है । मुनिश्री कालूजी के बाद इसके चौथमलजी, मुनिश्री नथमलजी ( युवाचार्य महाप्रज्ञ), मुनिश्री दुलहराजजी तथा मुनिश्री मधुकरजी रहे हैं । यह है तथा मुनिश्री मधुकरजी इस कार्य में विशेष रूप से नियुक्त हैं । यद्यपि पिछले ३५ वर्षों में इसका भाषा - माध्यम हिन्दी बन गया है पर २०० वर्षों का तेरापंथ का इतिहास 'ख्यात' के रूप में राजस्थानी भाषा में ही लिखा जाता
ख्यात पूर्ण रूप से प्रामालेखक क्रमशः मुनिश्री मुनिश्री दुलीचन्दजी,
क्रम अब भी चालू
रहा है।
Jain Education International
'ख्यात' में आचार्यों, साधु-साध्वियों तथा संघ की विशेष घटनाओं का उल्लेख है । पूरा वर्णन काँच की तरह स्पष्ट है । वह पूर्ण प्रामाणिकता से
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org