Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 07 08
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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( १० ) उपसंहार में (३२ श्लोक प्रमाण) अन्तिम कारिका में सिद्ध भगवन्त के स्वरूप इत्यादि का सुन्दर वर्णन किया है। प्रान्ते ग्रन्थकार ने भाष्यगत प्रशस्ति ६ श्लोकों में देकर ग्रन्थ की समाप्ति की है।
* श्रीतत्त्वार्थसूत्र पर उपलब्ध अन्य ग्रन्थ * श्रीतत्त्वार्थसूत्र पर वर्तमान काल में लभ्य-मुद्रित अनेक ग्रन्थ विद्यमान हैं।
(१) श्रीतत्त्वार्थसूत्र पर स्वयं वाचक श्री उमास्वाति महाराज की 'श्रीतत्त्वार्थाधिगम भाष्य' स्वोपज्ञ रचना है, जो २२०० श्लोक प्रमाण है।
(२) श्रीसिद्धसेन गणि महाराज कृत भाष्यानुसारिणी टीका १८२०२ श्लोक प्रमाण की है। यह सबसे बड़ी टीका कहलाती है।
(३) श्रीतत्त्वार्थभाष्य पर १४४४ ग्रन्थों के प्रणेता प्राचार्य श्री हरिभद्रसूरीश्वरजी महाराज कृत लघु टीका ११००० श्लोक प्रमाण की है। उन्होंने यह टीका साढ़े पांच (५॥) अध्याय तक की है। शेष टीका प्राचार्य श्री यशोभद्रसूरिजी ने पूर्ण की है।
(४) इस ग्रन्थ पर श्री चिरन्तन नाम के मुनिराज ने 'तत्त्वार्थ टिप्पण' लिखा है।
(५) इस ग्रन्थ के प्रथम अध्याय पर न्यायविशारद न्यायाचार्य महोपाध्याय श्री यशोविजयजीमहाराज कृत भाष्यतर्कानुसारिणी 'टीका' है।
(६) प्रागमोद्धारक श्री सागरानन्दसूरीश्वरजी म. श्री ने 'तत्त्वार्थकर्तृत्वतन्मतनिर्णय' नाम का ग्रन्थ लिखा है।
(७) भाष्यतर्कानुसारिणी टीका पर पू. शासनसम्राट् श्रीमद् विजय नेमिसूरीश्वरजी म. सा. के प्रधान पट्टधर न्यायवाचस्पति-शास्त्रविशारद पू. प्राचार्यप्रवर श्रीमद् विजय दर्शन सूरीश्वरजी महाराज ने श्रीतत्त्वार्थसूत्र पर के विवरण को समझाने के लिये 'गूढार्थदीपिका' नाम की विशद वृत्ति रची है । सिद्धान्तवाचस्पति-न्यायविशारद पू. प्रा. श्रीमद् विजयोदयसूरीश्वरजी म. सा. ने भी वृत्ति रची है ।