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प्रथमोऽध्यायः
सकलसंसारोच्छेदनिबन्धनमित्यत्र बोद्धव्यम् । अत्र पुनर्विशेषेण मिथ्यात्वोदयजनितदुरागमवासनावासितान्तःकरणाः परवादिनो मुक्त रुपायं मुक्तिस्वरूपं चान्यथा प्रतिपादयन्ति प्रमुग्धलुब्धलोकानाम् । तथा हि-सकलनिष्कलाप्तप्राप्तमन्त्रतन्त्रापेक्षदीक्षालक्षणात् श्रद्धामात्रानुसरणान्मोक्ष इति सैद्धान्तवैशेषिकाः । द्रव्यगुणकर्मसामान्यसमवायान्त्यविशेषाभावाभिधानानां साधर्म्यवैधर्म्यावबोधतन्त्रात् ज्ञानमात्रान्मोक्ष इति तार्किकवैशेषिका : त्रिकाल भस्मोद्भूलनेढ्यालड्डुकप्रदानप्रदक्षिणीकरणात्मविडम्बनादिक्रियाकाण्डमात्रानुष्ठानादेव मोक्ष इति पाशुपताः । सर्वेषु पेयापेयभक्ष्याभक्ष्यादिषु निश्चलचित्तत्वान्मोक्ष इति कालाचार्यकाः । तथा च चित्रिकमतोक्तिः - मदिरामोदमेदुरवदनसरसप्रसन्नहृदयः सव्यपार्श्वसमीपविनिवेशितशक्तिः शक्तिमुद्रासनधरः स्वयमुमामहेश्वरायमाणो नित्यामन्त्रेण पार्वतीश्वरमाराधयेदिति मोक्षः । प्रकृतिपुरुषयोर्विवेकख्यातेर्मोक्ष इति साङ्ख्याः । नैरात्म्यादिनिवेदितसम्भावनातो मोक्ष इति दशबलशिष्याः । श्रङ्गाराञ्जनादिवत् स्वभावादेव कालुष्योत्कर्षप्रवृत्तस्य
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में होने वाला जो परिपूर्ण रत्नत्रय है वही रत्नत्रय संपूर्ण संसार के नाश का कारण है ऐसा जानना चाहिये ।
अब यहां पर मिथ्यात्व के उदय से उत्पन्न हुई जो खोटे आगम की वासना है उस वासना से युक्त जो परवादी लोग हैं वे भोले मोही जीवों को विशेष रूप से मुक्ति का लक्षण और मुक्ति के उपाय का विपरीत कथन करते हैं
सकल निष्कल आप्त द्वारा प्राप्त हुए जो मन्त्र-तन्त्र हैं उनकी अपेक्षा युक्त दीक्षा है उस दीक्षा लक्षण वाली श्रद्धा का अनुसरण करने मात्र से अर्थात् श्रद्धा मात्र से मोक्ष हो जाता है ऐसा सैद्धान्त वैशेषिक कहते हैं । द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, समवाय, अन्त्य विशेष और अभाव इन सात पदार्थों का साधर्म्य वैधर्म्य रूप अवबोध होना ज्ञान है उस ज्ञान मात्र से ही मोक्ष होता है ऐसा तार्किक - वैशेषिक प्रतिपादन करते हैं । तीन कालों में भस्म लगाना, लड्डुओं का दान देना, प्रदक्षिणा देना, अपनी विडम्बना करना इत्यादि क्रिया काण्ड के अनुष्ठान मात्र से मुक्ति होती है ऐसा पाशुपत का अभिमत है । पेय-अपेय, भक्ष्य - अभक्ष्य आदि में विचार रहित होना [ कुछ भी अघोरीपन से खाना पीना, विवेक विचार नहीं करना ] निश्चित मन होने से मुक्ति होती है ऐसा कालकाचार्य का मत है | चित्रिक मत में कहा है कि मदिरा की गंध से युक्त मुख वाला और सरस प्रसन्न हृदय युक्त पुरुष जिसके कि सव्य बायें भाग में शक्ति [ त्रिशूल ] रखी है जो शक्ति मुद्रा आसन को धारण किये होने से स्वयं पार्वती शंकर के समान प्रतीत होता है, नित्य आमन्त्र से पार्वती और शंकर की आराधना करे इसी से मोक्ष होता है ।