Book Title: Tattvagyan Pathmala 1 Author(s): Hukamchand Bharilla Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur View full book textPage 6
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates पाठ १ श्री सीमंधर पूजन स्थापना भगवान । भव - समुद्र सीमित कियो, सीमंधर कर सीमित' निजज्ञान को, प्रगट्यो पूरण ज्ञान ॥ प्रगट्यो पूरण ज्ञान वीर्य – दर्शन सुखधारी, समयसार अविकार विमल चैतन्य - विहारी । अंतर्बल से किया प्रबल रिपु-मोह पराभव, अरे भवान्तक! करो अभय हर लो मेरा भव॥ ॐ ह्रीं श्री सीमंधरजिन ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् । अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः । अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् । जल प्रभुवर तुम जल-से शीतल हो, जल-से निर्मल अविकारी हो, मिथ्यामल धोने को जिनवर, तुमही तो मल - परिहारी हो । तुम सम्यग्ज्ञानजलोदधि हो, जलधर अमृत बरसाते हो, भविजन- मन-मीन - प्राणदायक, भविजन- मन- जलज खिलाते हो । हे ज्ञानपयोनिधि सीमंधर ! यह ज्ञान-प्रतीक समर्पित है, हो शान्त ज्ञेयनिष्ठा मेरी, जल से चरणाम्बुज चर्चित है ।। ॐ ह्रीं श्री सीमंधरजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलम् निर्वपामीति स्वाहा। चंदन चंदन-सम चन्द्रवदन जिनवर, तुम चन्द्र- किरण से सुखकर हो, भव-ताप निकंदन हे प्रभुवर! सचमुच तुम ही भव - दुःख - हर हो । जल रहा हमारा अन्त स्तल, प्रभु इच्छाओं की ज्वाला से, यह शान्त न होगा हे जिनवर, रे! विषयों की मधुशाला से । चिर अंतर्दाह मिटाने को, तुमही मलयागिरि चंदन हो, चंदन से चरचूं चरणांबुज, भवतपहर ! शत शत वंदन हो ।। ॐ ह्रीं श्री सीमंधरजिनेन्द्राय संसारतापविनाशनाय चंदनम् निर्वपामीति स्वाहा। १ ज्ञान को पर से हटा कर अपने में ही लगाना । ३ Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.comPage Navigation
1 ... 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 ... 69