Book Title: Tattvagyan Pathmala 1
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 45
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates जीवों के तो होता ही नहीं, किन्तु संसारी जीवों में भी तेरहवें, चौदहवें गुणस्थान वालों के नहीं होता। जिज्ञासु - क्षायिक भाव तो मुक्त जीवों के पाया जाता है ? प्रवचनकार - हाँ! मुक्त जीवों के तो क्षायिक भाव पाया जाता है, किन्तु समस्त संसारी जीवों के नहीं। अभव्यों और मिथ्यादृष्टियों के तो क्षायिक भाव होने का प्रश्न ही नहीं। सम्यक्त्वी और चारित्रवंतों के भी क्षायिक सम्यक्त्व व क्षायिक चारित्रवान जीवों तथा अरहन्तों में ही पाया जाता है। औपशमिक भाव सिर्फ औपशमिक सम्यक्त्व व औपशमिक चारित्रवंतों के ही होता है। इस तरह हम देखते हैं कि : १. सबसे कम संख्या औपशमिक भाव वालों की है, क्योंकि इसमें प्रौपशमिक सम्यक्त्व तथा प्रौपशमिक चारित्रवंत जीवों का ही समावेश हुआ है। २. औपशमिक भाव वालों से अधिक संख्या क्षायोपशमिक भाव वाले जीवों की है, क्योंकि इसमें क्षायिक समकिती, क्षायिक चारित्रवंत जीवों तथा अरहंत और सिद्धों का समावेश होता है। ३. क्षायिक भाव वालों से अधिक संख्या क्षायोपशमिक भाव वाले जीवों की है, क्योंकि इसमें एक से लेकर बारहवें गुणस्थान वाले जीवों का समावेश होता है। ४. क्षायोपशमिक भाव वालों से भी अधिक संख्या औदयिक भाव वालों की है, क्योंकि इसमें एक से लेकर चौरहवें गुणस्थानवी जीवों का समावेश होता ५. सबसे अधिक संख्या पारिणामिक भाव वाले जीवों की है, क्योंकि इसमें निगोद से लेकर सिद्ध तक के सर्व जीवों का समावेश होता है। इसी क्रम को लक्ष में रख कर सूत्र में औपशमिकादिक भावों का क्रम रखा गया है। ४२ Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com

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