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पाठ ८
पाँच पाण्डव
आचार्य जिनसेन
( व्यक्तित्व एंव कर्तृत्व) पुराण ग्रन्थों में पद्मपुराण के बाद जैन समाज में सबसे अधिक पढ़ा जाने वाला प्राचीन पुराण है - हरिवंशपुराण। इसमें छियासठ सर्ग और बारह हजार श्लोक हैं। इसमें बाईसवें तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ का चरित्र विशद रूप से वर्णित है। इसके अतिरिक्त कृष्ण-बलभद्र, कौरव-पाण्डव आदि अनेक इतिहास प्रसिद्ध महापुरुषों के चरित्र भी बड़ी खूबी के साथ चित्रित हैं।
इसके रचयिता हैं – प्राचार्य जिनसेन। प्राचार्य जिनसेन महापुराण के कर्ता भगवज्जिनसेनाचार्य से भिन्न हैं। ये पुन्नाट संघ के प्राचार्य थे। पुन्नाट कर्नाटक का प्राचीन नाम है। यह संघ कर्नाटक और काठियावाड़ के निकट २०० वर्ष तक रहा है। इस संघ पर गुजरात के राजवंशों की विशेष श्रद्धा और भक्ति रही है।
आपके गुरु का नाम कीर्तिषेण था और वर्द्धमान नगर के नन्नराज वसति नाम के मंदिर में रहकर इन्होंने विक्रम सं. ८४० में यह ग्रन्थ समाप्त किया था। इस ग्रन्थ के अलावा आपके और कोई ग्रन्थ उपलब्ध नहीं हैं और न कहीं अन्य ग्रन्थों में उल्लेख ही मिलते हैं। आपकी अक्षय कीर्ति के लिये यह एक महाग्रन्थ ही पर्याप्त है। ___ हरिवंशपुराण के भाषा टीकाकार जयपुर के प्रसिद्ध विद्वान पं. दौलतरामजी कासलीवाल हैं।
प्रस्तुत पाठ आपके उक्त सुप्रसिद्ध ग्रन्थ हरिवंशपुराण के आधार से ही लिखा गया हैं। पाण्डवों के सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी प्राप्त करने के लिए हरिवंशपुराण और पाण्डवपुराण का अध्ययन करना चाहिए।
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