Book Title: Tattvagyan Pathmala 1
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 63
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates भगवान की दिव्यवाणी सुनकर पाँचों पाण्डवों ने उसी समय भगवान से भवभ्रमण का नाश करने वाली दिगम्बरी दीक्षा ग्रहण कर ली तथा उनकी माता कुन्ती एवं द्रौपदी, सुभद्रा आदि अनेक रानियों ने आर्जिका राजमती (राजुल) के पास आर्यिका के व्रत स्वीकार कर लिये। सुरेश - फिर? अध्यापक - फिर क्या ? पाँचों पाण्डव मुनिराज प्रात्म-साधना में तत्पर हो घोर तपश्चरण करने लगे। एक दिन वे शत्रुजय गिरि पर ध्यान मग्न थे। उसी समय वहाँ दुर्योधन का वंशज यवरोधन आया और पाण्डवों को ध्यान अवस्था मे देखकर उसका क्रोध प्रज्वलित हो गया। वह सोचने लगा ये ही वे दुष्ट पाण्डव हैं, जिन्होंने हमारे पूर्वज दुर्योधनादि कौरवों की दुर्दशा की थी। अभी ये निःसहाय हैं, हथियार-विहीन हैं, इस समय इनसे बदला लेना चाहिये और इन्हें अपने किए का मजा चखाना चाहिये। यह सोचकर उस दुष्ट ने लोहे के गहने बनाकर उन्हें आग में तपाकर लालसुर्ख कर लिये और पाँचों पाण्डवों को ध्यानावस्था में पहिनाकर कहने लगा, दुष्टों! अपने किए का मजा चखो। रमेश - हैं! क्या कहा! उस दुष्ट ने पाण्डवों को जला डाला ? अध्यापक - वह महामुनि पाण्डवों को क्या जलाता, वह स्वयं द्वेष की आग में जल रहा था। उसके द्वारा पहिनाए गरम लोहे के आभूषणों से पाण्डवों की काया अवश्य जल रही थी, किन्तु वे स्वयं तो ज्ञानानन्द-स्वभावी प्रात्मा में लीन थे और आत्मलीनता की अपूर्व शीतलता में अनन्त शान्त थे तथा ध्यान की ज्वाला से शुभाशुभ भावों को भस्म कर रहे थे। सुरेश - फिर क्या हुआ ? क्या वे जल गये ? अध्यापक - हाँ, उनकी पार्थिव देह तो जल गई। साथ ही तीन पाण्डवयुधिष्ठर, भीम और अर्जुन ने तो क्षपक-श्रेणी का आरोहण कर प्रष्ट कर्मों को भी जला डाला और केवलज्ञान पाकर शत्रुजय गिरी से सिद्धपद प्राप्त किया तथा नकुल और सहदेव ने देवायु का बन्ध कर सर्वार्थसिद्धि प्राप्त की। वे भी वहाँ से आकर एक मनुष्य-भव धारण करके मोक्ष प्राप्त करेंगे। __रमेश - अच्छा तो! शत्रुजय इसलिए सिद्धक्षेत्र कहलाता है, क्योंकि वहाँ से तीन पाण्डव मोक्ष गए थे। यह शत्रुजय है कहाँ। ६० Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com

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