Book Title: Tattvagyan Pathmala 1
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 67
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates भावना बत्तीसी प्रेम भाव हो सब जीवों से, गुणी जनों में हर्ष प्रभो । करुणा-स्रोत बहे दुखियों पर, दुर्जन में मध्यस्थ विभो ।। १।। यह अनंत बल-शील आतमा, हो शरीर से भिन्न प्रभो । ज्यों होती तलवार म्यान से , वह अनन्त बल दो मुझको ।। २।। सुख-दुःख वैरी बन्धु वर्ग में, कांच-कनक में समता हो । वन-उपवन प्रासाद कुटी में, नहीं खेद नहिं ममता हो ।। ३।। जिस सुन्दरतम पथ पर चलकर, जीते मोह मान मन्मथ ।। वह सुन्दर पथ ही प्रभु! मेरा, बना रहे अनुशीलन पथ ।।४।। एकेन्द्रिय आदिक प्राणी की, यदि मैंने हिंसा की हो । शुद्ध हृदय से कहता हूँ वह, निष्फल हो दुष्कृत्य प्रभो ।।५।। मोक्षमार्ग प्रतिकूल प्रवर्तन, जो कुछ किया कषायों से । विपथ-गमन सब कालुष मेरे, मिट जावें सद्भावों से ।।६।। चतुर वैद्य विक्षत करता, त्यों प्रभु! मै भी आदि उपाँत । अपनी निन्दा अालोचन से, करता हूँ पापों को शांत ।। ७।। सत्य अहिंसादिक व्रत में भी, मैंने हृदय मलीन किया ।। व्रत विपरीत-प्रवर्तन करके, शीलाचरण विलीन किया ।। ८ ।। कभी वासना की सरिता का, गहन सलिल मुझ पर छाया । पी पीकर विषयों की मदिरा, मुझमें पागलपन पाया ।। ९ ।। मैंने छली और मायावी, हो असत्य-आचरण किया । पर-निन्दा गाली चुगली जो, मुँह पर पाया वमन किया ।। १०।। निरभिमान उज्जवल मानस हो, सदा सत्य का ध्यान रहे । निर्मल-जल की सरिता सदृश, हिय में निर्मल ज्ञान बहे ।। ११।। १. महल, २. कामदेव, ३. विरुद्ध , ४. खोटा मार्ग, ५. नष्ट, ६. सदाचार, ७. लोप, ८. इंद्रियों-विषयों की चाह, ९. गहरा ६४ Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 65 66 67 68 69