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अध्यापक - हाँ भाई! यह गुजरात प्रान्त के सौराष्ट्र वाले भाग में भावनगर के पास स्थित है। इसे पालीताना भी कहते हैं।
सुरेश - सोनगढ़ के पास में। सोनगढ़ तो मैं गया था। भावनगर के पास ही तो सोनगढ़ है।
अध्यापक - हाँ, भाई! सोनगढ़ से कुल १८ किलोमीटर है शत्रुजय गिरि। वहाँ की वन्दना हमें अवश्य करनी चाहिए तथा पाण्डवों के जीवन से शिक्षा ग्रहण करना चाहिए।
सुरेश - हाँ! अब मैं समझा कि आत्म-साधना के बिना लौकिक जीत-हार का कोई महत्त्व नहीं है। आत्मा की सच्ची जीत तो मोह-राग-द्वेष के जीतने में है।
रमेश - और जुया के व्यसन में पड़कर महापराक्रमी पाण्डवों को भी अनेक विपत्तियों में पड़ना पड़ा, अत: हमें कोई भी काम शर्त लगाकर नहीं करना चाहिये।
अध्यापक - बहुत अच्छा। आज तुमने सच्चा और सार्थक पाठ पढ़ा। प्रतिज्ञा करो कि आज से कोई कार्य शर्त लगाकर नहीं करेंगे।
सुरेश व रमेश - ( एक साथ ):
हाँ, गुरुदेव! हम प्रतिज्ञा करते हैं कि आज से कोई भी कार्य शर्त लगाकर नहीं करेंगे और अपने साथियों को भी शर्त लगाकर काम नहीं करने की प्रेरणा देंगे।
प्रश्न -
१. पाण्डवों की कहानी लिखिये ? इससे हमें क्या शिक्षा मिलती है ? २. क्या द्रौपदी के पांच पति थे ? यदि नहीं, तो फिर ऐसा क्यों कहा जाता है ?
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