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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates अध्यापक - हाँ भाई! यह गुजरात प्रान्त के सौराष्ट्र वाले भाग में भावनगर के पास स्थित है। इसे पालीताना भी कहते हैं। सुरेश - सोनगढ़ के पास में। सोनगढ़ तो मैं गया था। भावनगर के पास ही तो सोनगढ़ है। अध्यापक - हाँ, भाई! सोनगढ़ से कुल १८ किलोमीटर है शत्रुजय गिरि। वहाँ की वन्दना हमें अवश्य करनी चाहिए तथा पाण्डवों के जीवन से शिक्षा ग्रहण करना चाहिए। सुरेश - हाँ! अब मैं समझा कि आत्म-साधना के बिना लौकिक जीत-हार का कोई महत्त्व नहीं है। आत्मा की सच्ची जीत तो मोह-राग-द्वेष के जीतने में है। रमेश - और जुया के व्यसन में पड़कर महापराक्रमी पाण्डवों को भी अनेक विपत्तियों में पड़ना पड़ा, अत: हमें कोई भी काम शर्त लगाकर नहीं करना चाहिये। अध्यापक - बहुत अच्छा। आज तुमने सच्चा और सार्थक पाठ पढ़ा। प्रतिज्ञा करो कि आज से कोई कार्य शर्त लगाकर नहीं करेंगे। सुरेश व रमेश - ( एक साथ ): हाँ, गुरुदेव! हम प्रतिज्ञा करते हैं कि आज से कोई भी कार्य शर्त लगाकर नहीं करेंगे और अपने साथियों को भी शर्त लगाकर काम नहीं करने की प्रेरणा देंगे। प्रश्न - १. पाण्डवों की कहानी लिखिये ? इससे हमें क्या शिक्षा मिलती है ? २. क्या द्रौपदी के पांच पति थे ? यदि नहीं, तो फिर ऐसा क्यों कहा जाता है ? ६१ Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008318
Book TitleTattvagyan Pathmala 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1989
Total Pages69
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Education, Spiritual, & Philosophy
File Size383 KB
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