________________
Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates
पाठ ७
चार अभाव
आचार्य समन्तभद्र ( व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व )
श्री मूलसंघव्योमेन्दुर्भारते भावितीर्थकृत । देशे समन्तभद्राख्यो, मुनिर्जीयात्पदर्द्धिक: ।। कविवर हस्तिमल
लोकेषणा से दूर रहने वाले स्वामी समन्तभद्र का जीवन-चरित्र एक तरह से अज्ञात ही है। जैनाचार्यों की यह विशेषता रही है कि महान् से महान् कार्यों को करने के बाद भी उन्होंने अपने लौकिक जीवन के बारे में कहीं कुछ भी नहीं लिखा है। जो कुछ थोड़ा बहुत प्राप्त है, वह पर्याप्त नहीं है।
आप कदम्ब राजवंश के क्षत्रिय राजकुमार थे। आपके बाल्यकाल का नाम शान्ति वर्मा था। आपका जन्म दक्षिण भारत में कावेरी नदी के तट पर स्थित उरगपुर नामक नगर में हुआ था। आपका अस्तित्व विक्रम संवत् १३८ तक था।
आपके पारिवारिक जीवन के सम्बन्ध के कुछ भी ज्ञात नहीं है। आपने अल्पवय में ही मुनि दीक्षा धारण कर ली थी । दिगम्बर जैन साधु होकर आपने घोर तपश्चरण किया और प्रगाध ज्ञान प्राप्त किया ।
आप जैन सिद्धान्त के तो अगाध मर्मज्ञ थे ही; साथ ही तर्क, न्याय, व्याकरण, छन्द, अलंकार, काव्य और कोष भी पंडित थे । आपमें बेजोड़ वाद शक्ति थी। आपने कई बार घूम-घूमकर कुवादीयों का गर्व खण्डित किया था। आप स्वयं लिखते हैं :
66
"
वादार्थी विचराम्यहं नरपते, शार्दूलविक्रीडितम् ।
हे राजन्! मैं वाद के लिए सिंह की तरह विचरण कर रहा हूँ।
आपके परवर्ती आचार्यों ने भी आपका स्मरण बड़े ही सन्मान के साथ किया है। आचार्य जिनसेन ने आदिपुराण में आपके वचनों को कुवादीरूपी पर्वतों को
४५
Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com