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चार अभाव भावैकान्ते पदार्थानामभावानामपहवात् । सर्वात्मकमनाद्यन्तमस्वरुपमतावकम् ।।९।। कार्यद्रव्यमनादि स्यात् प्रागभावस्य निहवे । प्रध्वंसस्य च धर्मस्य प्रच्यवेऽनन्तां व्रजेत् ।।१०।। सर्वात्मकं तदेकं स्यादन्यापोहव्यतिक्रमे ।। अन्यत्र समवाये न व्यपदिश्येत सर्वथा ।।११।।
– प्राप्तमीमांसा : प्राचार्य समन्तभद्र आचार्य समन्तभद्र - वस्तुस्वरूप अनेकान्तात्मक है। जिस प्रकार स्व की अपेक्षा से भाव ( सद्भाव) पदार्थ का स्वरूप है, उसी प्रकार पर की अपेक्षा से प्रभाव भी पदार्थ का धर्म है।
जिज्ञासु - प्रभाव किसे कहते हैं ? वे कितने प्रकार के होते हैं ?
प्राचार्य समन्तभद्र - एक पदार्थ का दूसरे पदार्थ में अस्तित्व न होने को अभाव कहते हैं। प्रभाव चार प्रकार के होते हैं – (१) प्रागभाव (२) प्रध्वंसाभाव (३) अन्योन्याभाव (४) अत्यंताभाव। जिज्ञासु - कृपया संक्षेप में चारों प्रकार के प्रभाव समझा दीजिए ?
आचार्य समन्तभद्र - पूर्व पर्याय में वर्तमान पर्याय का प्रभाव प्रागभाव है अथवा कार्य ( पर्याय) होने के पूर्व कार्य ( पर्याय) का नहीं होना ही प्रागभाव है। इसी प्रकार वर्तमान पर्याय का आगामी पर्याय में प्रभाव प्रध्वंसाभाव है। जैसे दही की पूर्व पर्याय दूध थी, उसमें दही का प्रभाव था, अतः उस प्रभाव को प्रागभाव कहेंगे और छाछ दहीं की आगामी पर्याय हैं, उसमें भी वर्तमान पर्याय दही का अभाव है, अत: उस प्रभाव को प्रध्वंसाभाव कहेंगे।
___ “भवत्यभावोऽपि च वस्तुधर्मो, भावान्तरं भाववदहतस्ते।"
- युकत्यनुशासनः प्राचार्य समन्तभद्र, कारिका ५९ । " कार्यस्यात्मलाभात्प्रागऽभवनं प्रागभावः।"
– अष्टसहस्त्री : विद्यानन्दि, पृष्ठ ६७।
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