Book Title: Tattvagyan Pathmala 1
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 49
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates छिन्न-भिन्न करने के लिए वज्र के समान बताया है तथा आपको कवि, वादी, गमक और वाग्मियों का चूड़ामणि कहा है: नमः समन्तभद्राय, महते कविवेधसे । यद्वचो वज्रपातेन, निर्भिन्नाः कुमताद्रयः ।। कवीनां गमकानां च, वादीनां वाग्मिनामपि । यश: सामन्तभद्रीयं, मूर्ध्नि चूड़ामणीयते ॥ गद्य चिंतामणिकार वादीभसिंह सूरि लिखते है :सरस्वतीस्वैरविहारभूमयः, समन्तभद्रप्रमुखा मुनीश्वराः । जयन्ति वाग्वज्रनिपातपाटि प्रतीपराद्धान्तमहीध्रकोटयः ।। चन्द्रप्रभचरित्रकार वीरनंदि प्राचार्य ' समन्तभद्रादिभवा च भारती' से कंठ विभूषित नरोत्तमों की प्रशंसा करते हैं तो प्राचार्य शुभचन्द्र ' ज्ञानार्णव' में इनके वचनों को अज्ञानांधकार के नाश हेतु सूर्य के समान स्वीकार करते हुए इनकी तुलना में औरों को खद्योतवत् बताते हैं : समन्तभद्रादिकवीन्द्रभास्वतां, स्फुरंति यत्रामलसूक्तिरश्मयः । व्रजन्ति खद्योतवदेव हास्यतां, न तत्र किं ज्ञानलवोद्धता जनाः ।। आप आद्यस्तुतिकार के रूप में प्रसिद्ध हैं। आपने स्तोत्र साहित्य को प्रौढ़ता प्रदान की है। आपकी स्तुतियों में बड़े-बड़े गंभीर न्याय भरे हुए हैं। आपके द्वारा लिखा गया 'आप्तमीमांसा' ग्रन्थ एक स्तोत्र ही है, जिसे 'देवागम स्तोत्र' भी कहते हैं। वह इतना गंभीर एवं अनेकात्मक तत्त्व से भरा हुआ है कि उसकी कई टीकाएँ लिखी गई, जो कि न्याय शास्त्र के अपूर्व ग्रन्थ हैं। अकलंक की 'अष्टशती' और विद्यानन्दि की 'अष्टसहस्त्री' इसी की टीकाएँ हैं । प्रस्तुत 'चार प्रभाव' नाम का पाठ उक्त आप्तमीमांसा की कारिका क्र. ९, १० व १९ के आधार पर ही लिखा गया है। इसके अलावा आपने तत्त्वानुशासन, युक्त्यनुशासन, स्वयंभूस्तोत्र, जिनस्तुतिशतक, रत्नकरण्ड श्रावकाचार, प्राकृत व्याकरण, प्रमाण पदार्थ, कर्मप्राभृत टीका और गंधहस्तिमहाभाष्य (अप्राप्य ) नामक ग्रन्थों की रचना की है। ४६ Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com

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