________________
Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates
जिज्ञासु - यह तो समझ में आ गया। अब कृपा करके यह बताइये कि इन भावों में से ग्रहण करने योग्य व त्याग करने योग्य कौन-कौन से भाव हैं ? क्योंकि कहा है – “ बिन जाने तै दोष-गुणन को, कैसे तजिए गहिए।"
प्रवचनकार - यह तुमने बहुत अच्छा पूछा क्योंकि हेय, ज्ञेय, उपादेय को जाने बिना कोई जानकारी पूरी नहीं होती है।
१. औदयिक हेय, औपशमिक भाव तथा साधक तथा दशा का क्षायोपशमिक भाव और क्षायिक भाव प्रगट करने की अपेक्षा उपादेय पारिणामिक भाव आश्रय करने की अपेक्षा परम उपादेय है।
२. प्रौदयिक भाव विकार है, साधक के लिए हेय है, पाश्रय करने योग्य नहीं है। औपशमिक भाव साधक का क्षायोपशमिक भाव सादिसांत है व एक समय की पर्याय हैं; तथा क्षायिकभाव सादिअनन्त है, पर्यायरूप हैं; अतः ये भी आश्रय करने योग्य नहीं हैं।
पारिणामिक भाव जो कि अनादिअनन्त है, वह एक ही प्राश्रय करने योग्य है। सारांश यह है कि जिनको धर्म करना हो, सुखी होना हो, उन्हें औदयिकादि चारों भाव पर से दृष्टि उठाकर मात्र परम पारिणामिक भावरूप त्रिकाली भूतार्थ ज्ञायकस्वभाव का ही आश्रय लेना चाहिए; क्योंकि उसके पाश्रय से ही धर्म की उत्पत्ति , स्थिति, वृद्धि और पूर्णता होती है।
प्रश्न -
१. जीव के असाधारण भाव कितने हैं व कौन-कौन से ? नाम सहित लिखिए ? २. सबसे अधिक संख्या कौनसे भाव वाले जीवों की है और क्यों ? ३. क्षायोपशमिक भाव कितने प्रकार के है ? नाम सहित लिखिये ? ४. क्या अभव्यों के औपशमिक भाव हो सकते हैं ? ५. सिद्धों के कितने भाव है और कौन-कौन से ? ६. पांचों भावों में हेय, ज्ञेय और उपादेय बताइये। ७. आचार्य उमास्वामी के व्यक्तित्व और कर्तृत्व पर प्रकाश डालिए ?
४४
Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com