Book Title: Tattvagyan Pathmala 1
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 43
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates प्रात्मा के ज्ञान, दर्शन और वीर्य आदि के प्रांशिक विकास तथा आंशिक अविकास को ज्ञान, दर्शन, वीर्य आदि का क्षायोपशमिक भाव समझ लेना चाहिए। ये सभी छद्मस्थ जीवों के होते हैं। ४. औदयिक भाव ___ कर्मों के उदयकाल में आत्मा में विभावरूप परिणमन का होना औदयिक भाव है। ५. पारिणामिक भाव सहज स्वभाव, उत्पाद-व्ययनिरपेक्ष, ध्रुव, एकरूप रहनेवाला भाव पारिणामिक भाव है। इन भावों के क्रमशः दो, नौ, अठारह, इक्कीस और तीन होते हैं। औपशमिक भाव के औपशमिक सम्यक्त्व और औपशमिक चारित्र ये २ भेद हैं। क्षायिक भाव के केवलज्ञान, केवलदर्शन, क्षायिक दान, क्षायिक लाभ , क्षायिक भोग, क्षायिक उपभोग, क्षायिक वीर्य, क्षायिक सम्यक्त्व और क्षायिक चारित्र - इस प्रकार ९ भेद हैं। मिश्र (क्षायोपशमिक) भाव के मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्ययज्ञान ये चार ज्ञान; कुमति, कुश्रुत, कुअवधि ये तीन अज्ञान; चक्षुदर्शन, प्रचक्षुदर्शन, अवधिदर्शन ये तीन दर्शन; क्षायोपशमिक दान, लाभ, भोग, उपभोग, वीर्य ये पाँच लब्धियाँ; क्षायोपशमिक सम्यक्त्व, क्षायोपशमिक चारित्र और संयमासंयम - इस प्रकार कुल १८ भेद होते है। __ औदयिक भाव के २१ भेद हैं - नरक, तिर्यञ्च, मनुष्य , देव - ये चार गति; क्रोध, मान, माया, लोभ – ये चार कषाय; स्त्रीवेद, पुंवेद, नपुंसक वेद ये तीन वेद; कृष्ण, नील, कापोत, पीत, पद्म, शुक्ल ये छह लेश्याये; मिथ्यादर्शन, अज्ञान, असंयम तथा प्रसिद्धत्व भाव। १ द्विनवाष्टादशैकविंशतित्रिभेदा यथाक्रमम् – तत्त्वार्थसूत्र , अ. २, सूत्र २ सम्यक्त्वचारित्रे - तत्त्वार्थसत्र. अ. २. सत्र ३ ३ ज्ञानदर्शनदानलाभभोगोपभोगवीर्याणिच – तत्त्वार्थसूत्र, अ. २, सूत्र ४ ४ ज्ञानाज्ञानदर्शनलब्धयश्चतुस्त्रित्रिपञ्चभेदाः सम्यक्त्वचारित्रसंयमासंयमाश्च । तत्त्वार्थसूत्र, अ. २, सूत्र ५ गतिकषायलिङ्गमिथ्यादर्शनाज्ञानासंयतासिद्धलेश्याश्चतुश्चतुस्त्र्येकैकैकैकषट् भेदाः- तत्त्वार्थसूत्र, अ. २, सूत्र ६ ४० Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com

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