Book Title: Tattvagyan Pathmala 1
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 22
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates शंकाकार - इन लक्षणों में तो अपने दोष बता दिये, तो फिर आप बताइये न कि जीव का सही लक्षण क्या होगा ? प्रवचनकार - जीव का सही लक्षण चेतना अर्थात् उपयोग है। तत्त्वार्थसूत्र में कहा है – 'उपयोगो लक्षणम्'। न इसमें अव्याप्ति दोष है क्योंकि चेतना ( उपयोग) सभी जीवों के पाया जाता है, और न अतिव्याप्ति दोष है, क्योंकि उपयोग जीव के अतिरिक्त किसी भी द्रव्य में नही पाया जाता है, और असंभव दोष तो हो ही नहीं सकता है, क्योंकि सब जीवों के उपयोग (चेतना) स्पष्ट देखने में आता है। इसी प्रकार प्रत्येक लक्षण पर घटित कर लेना चाहिये और नवीन लक्षण बनाते समय इन बातों का पूरा-पूरा ध्यान रखना चाहिए। श्रोता - एक-दो उदाहरण देकर और समझाये न ? प्रवचनकार - नहीं, समय हो गया है। मैंने एक उदाहरण अंतरंग यानी आत्मा का और एक उदाहरण बाह्य यानी गाय, पशु आदि का देकर समझा दिया है; अब तुम स्वयं अन्य पर घटित करना। यदि समझ मे न आवे तो आपस में चर्चा करना। फिर भी समझ मे न आवे तो कल फिर मैं विस्तार से अनेक उदाहरण देकर समझाऊँगा। ध्यान रखो समझ में समझने से आता है, समझाने से नही; अतः स्वयं समझने के लिए प्रयत्नशील व चिन्तनशील बनना चाहिए। प्रश्न - १. लक्षण किसे कहते हैं ? २. लक्षणाभासों में कितने प्रकार के दोष होते हैं ? नाम सहित लिखिए ? ३. निम्नलिखित में परस्पर अंतर बताइये : (क) प्रात्मभूत लक्षण और अनात्मभूत लक्षण। (ख) अव्याप्ति दोष और अतिव्याप्ति दोष। ४. निम्नलिखित कथनों की परिक्षा कीजिए : (क) जो अमूर्त्तिक हो उसे जीव कहते हैं। (ख) गाय को पशु कहते हैं। (ग) पशु को गाय कहते हैं। (घ) जो खट्टा हो उसे नीबु कहते हैं। (च) जिसमें स्पर्श, रस, गंध, वर्ण हो उसे पुद्गल कहते हैं। ५. अभिनव धर्मभूषण यति के व्यक्तित्व पर प्रकाश और कर्तृत्व पर प्रकाश डालिए? Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com

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