Book Title: Tattvagyan Pathmala 1
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 35
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates पाठ ५१ सुख क्या है ? यह तो सर्वमान्य तथ्य है कि सभी जीव सुख चाहते हैं और दुःख से डरते हैं। पर प्रश्न तो यह है कि वास्तविक सुख है क्या ? वस्तुतः सुख कहते किसे हैं ? सुख का वास्तविक स्वरूप समझे बिना मात्र सुख चाहने का कोई अर्थ नहीं। प्रायः सामान्य जन भोग-सामग्री को सुख-सामग्री मानते है और उसकी प्राप्ति को सुख की प्राप्ति समझते है, अतः उनका प्रयत्न भी उसी पोर रहता है। उनकी दृष्टि में सुख कैसे प्राप्त किया जाय का अर्थ होता है 'भोग-सामग्री कैसे प्राप्त की जावे ?' उनके हृदय में ‘सुख क्या है ?' इस तरह का प्रश्न ही नहीं उठता, क्योंकि उनका अंतर्मन यह मान बैठा है कि भोगमय जीवन ही सुखमय जीवन है। अतः जब-जब सुख-समृद्धि की चर्चा आती है तो यही कहा जाता है कि प्रेम से रहो, मेहनत करो, अधिक अन्न उपजाम्रो , प्रौद्योगिक और वैज्ञानिक उन्नति करो - इससे देश में समृद्धि आवेगी और सभी सुखी हो जावेंगे। आदर्शमय बातें कही जाती हैं कि एक दिन वह होगा जब प्रत्येक मानव के पास खाने के लिए पौष्टिक भोजन, पहिनने को ऋतुओं के अनुकूल उत्तम वस्त्र और रहने को वैज्ञानिक सुविधाओं से युक्त आधुनिक बंगला होगा; तब सभी सुखी हो जावेंगे। हम इस पर बहस नहीं करना चाहते हैं कि यह सब कुछ होगा या नहीं, पर हमारा प्रश्न तो यह है कि यह सब कुछ हो जाने पर भी क्या जीवन सुखी हो जावेगा ? यदि हाँ, तो जिनके पास यह सब कुछ है, वे तो आज भी सुखी होंगे? या जो देश इस समृद्धि की सीमा छु रहे हैं, वहाँ तो सभी सुखी और शांत होंगे? पर देखा यह जा रहा है कि सभी पाकुल-व्याकुल और अशांत है, भयाकुल और चिन्तातुर हैं, अतः ‘सुख क्या है ?' इस विषय पर गम्भीरता से सोचा जाना चाहिए। वास्तविक सुख क्या है और वह कहाँ है ?' इसका निर्णय किये बिना इस दिशा में सच्चा पुरुषार्थ नहीं किया जा सकता और न ही सच्चा सुख प्राप्त किया जा सकता है। ३२ Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com

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