Book Title: Tattvagyan Pathmala 1
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 39
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates पाठ ६ पंच भाव आचार्य गृद्धपिच्छ उमास्वामी ( व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व) तत्त्वार्थसूत्रकरिं, गृद्धपिच्छोपलक्षितम्। वन्दे गणीन्द्रसंजातमुमास्वामीमुनीश्वरम्।। ___ कम से कम लिखकर अधिक से अधिक प्रसिद्धि पाने वाले प्राचार्य गृद्धपिच्छ उमास्वामी के तत्त्वार्थसूत्र से जैन समाज जितना अधिक परिचित है, उनके जीवनपरिचय के सम्बन्ध में उतना ही अपरिचित है। ये कुन्दकुन्दाचार्य के पट्ट शिष्य थे तथा विक्रम की प्रथम शताब्दी के अन्तिम काल में तथा द्वितीय शताब्दी के पूर्वार्द्ध में भारत-भूमि को पवित्र कर रहे थे। आचार्य गृद्धपिच्छ उमास्वामी उन गौरवशाली आचार्यों में हैं, जिन्हें समग्र आचार्य परम्परा में पूर्ण प्रामाणिकता और सन्मान प्राप्त है। जो महत्त्व वैदिकों में गीता का, ईसाइयों में बाइबिल का और मुसलमानों में कुरान का माना जाता है, वही महत्त्व जैन परम्परा में गृद्धपिच्छ उमास्वामी के तत्त्वार्थसूत्र को प्राप्त है। इसका दूसरा नाम मोक्षशास्त्र भी है। यह संस्कृत भाषा का सर्वप्रथम जैन ग्रन्थ है। इस महान ग्रन्थ पर दिगम्बर व श्वेतांबर दोनों परम्परागों में संस्कृत व हिन्दी भाषाओं में अनेकानेक टीकायें व भाष्य लिखे गये हैं। दिगम्बर परम्परा में संस्कृत भाषा में पूज्यपाद आचार्य देवनन्दि की सर्वार्थसिद्धि, अकलंकदेव का तत्त्वार्थ राजवार्तिक और विद्यानन्दि का तत्त्वार्थ श्लोकवार्तिक सर्वाधिक प्रसिद्ध रचनाएँ हैं। आचार्य समन्तभद्र ने इसी ग्रन्थराज पर गंधहस्ति महाभाष्य नामक महाग्रन्थ लिखा था, जो कि अप्राप्त है, पर तत्सम्बन्धी उल्लेख प्राप्त हैं। श्रुतसागर सूरि की भी एक टीका संस्कृत भाषा में प्राप्त है। ३६ Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com

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