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हिन्दी भाषा के प्राचीन विद्वानों में पं. सदासुखदासजी कासलीवाल की अर्थप्रकाशिका टीका प्रसिद्ध है।आधुनिक विद्वानों में पं. फूलचंदजी सिद्धान्ताचार्य, पं. कैलाशचंदजी सिद्धान्ताचार्य, पं. पन्नालालजी साहित्याचार्य आदि अनेक विद्वानों द्वारा लिखी गई टीकाएँ उपलब्ध हैं। श्री रामजीभाई माणेकचंद दोशी, सोनगढ़ द्वारा लिखित ८१० पृष्ठों की एक विशाल टीका भी है।
यह ग्रंथराज जैन समाज द्वारा संचालित सभी परीक्षा बोर्डों के पाठ्यक्रमों में निर्धारित है और सारे भारतवर्ष के जैन विद्यालयों में पढ़ाया जाता है।
प्रस्तुत पाठ तत्त्वार्थसूत्र के द्वितीय अध्याय के आधार पर लिखा गया है।
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