Book Title: Tattvagyan Pathmala 1
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 37
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates एक तो इच्छाओं की पूर्ति संभव ही नही है। कारण कि अनन्त जीवों में प्रत्येक की इच्छाएँ अनन्त हैं और भोग सामग्री है सीमित; तथा एक इच्छा की पूर्ति होते ही तत्काल दूसरी नई इच्छा उत्पन्न हो जाती हैं। इस प्रकार कभी समाप्त न होने वाला इच्छाओं का प्रपातवत् प्रवाहक्रम चलता ही रहता है। अतः यह तो निश्चित है कि नित्य बदलती हुई नवीन इच्छाओं की पूर्ति कखी संभव नहीं है। अतः तुम्हारी मनोकामना पूर्ण होगी, और तुम सुखी हो जावोगे; ऐसी कल्पनाएँ मात्र मृग-मरीचिका ही सिद्ध होती हैं। न तो कभी सम्पूर्ण इच्छाएँ पूर्ण होने वाली हैं और न ही यह जीव इच्छाओं की पूर्ति से सुखी होने वाला है। वस्तुत: तो इच्छाओं की पूर्ति में सुख है ही नही, यह तो सिर का बोझ कन्धे पर रखकर सुख मानने जैसा है। यदि कोई कहे जितनी इच्छाएँ पूर्ण होंगी, उतना तो सुख होगा ही, पूरा न सही-यह बात भी ठीक नहीं है; कारण कि सच्चा सुख तो इच्छाओं के अभाव में है, इच्छाओं कि पूर्ति में नहीं; क्योंकि हम इच्छानों की कमी (आंशिक प्रभाव) में आकुलता की कमी प्रत्यक्ष अनुभव करते हैं। अतः यह सहज ही अनुमान किया जा सकता है कि इच्छाओं के पूर्ण प्रभाव में पूर्ण सुख होगा ही। यदि यह कहा जाय कि इच्छा पूर्ण होने पर समाप्त हो जाती है, अतः उसे सुख कहना चाहिए-यह कहना भी गलत है; क्योंकि इच्छाओं के प्रभाव का अर्थ इच्छाओं की पूर्ति होना नहीं, वरन् इच्छाओं का उत्पन्न ही नहीं होना है। भोग-सामग्री से प्राप्त होने वाला सुख वास्तविक सुख है ही नहीं, वह तो दुःख का ही तारतम्यरूप भेद है। प्राकुलतामय होने से वह दुःख ही है। सुख का स्वभाव तो निराकुलता है और इन्द्रियसुख में निराकुलता पाई नहीं जाती है। जो इन्द्रियों द्वारा भोगने में आता है वह विषय सुख है। वह वस्तुतः दुःख का ही एक भेद है। उसका तो मात्र नाम ही सुख है। अतीन्द्रिय आनन्द इन्द्रियातीत होने से उसे इन्द्रियों द्वारा नहीं भोगा जा सकता। जैसे आत्मा अतीन्द्रिय होने से इन्द्रियों द्वारा प्राप्त नहीं किया जा सकता, उसी प्रकार अतीन्द्रिय सुख आत्मामय होने से इन्द्रियों द्वारा प्राप्त नहीं किया जा सकता। __जो वस्तु जहाँ होती है, उसे वहाँ ही पाया जा सकता है। जो वस्तु जहाँ हो ही नहीं, जिसकी सत्ता की जहाँ संभावना ही न हो, उसे वहाँ कैसे पाया ३४ Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com

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