Book Title: Tattvagyan Pathmala 1
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 20
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates लक्षण के एकदेश में लक्षण के रहने को अव्याप्ति दोष कहते हैं। जैसे - गाय का लक्षण सांवलापन या पशु का लक्षण सींग कहना। सांवलापन सभी गायों में नहीं पाया जाता है, इसी प्रमाण सींग भी सभी पशुओं के नहीं पाये जाते हैं; अतः ये दोनों लक्षण अव्याप्ति दोष से युक्त हैं। शंकाकार - यदि गाय का लक्षण सींग मानें तो............? प्रवचनकार - तो फिर वह लक्षण प्रतिव्याप्ति दोष से युक्त हो जावेगा; क्योंकि जो लक्षण लक्ष्य और अलक्ष्य दोनों में रहे, उसे अतिव्याप्ति दोष से युक्त कहते हैं। जिज्ञासु - यह अलक्ष्य क्या है ? प्रवचनकार - लक्ष्य के अतिरिक्त दूसरे पदार्थों को अलक्ष्य कहते हैं। यद्यपि सब गायों के सींग पाये जाते हैं, किन्तु सींग गायों के अतिरिक्त अन्य पशुओं के भी तो पाये हैं। यहाँ 'गाय' लक्ष्य है और 'गाय को छोड़कर अन्य पशु' अलक्ष्य है, तथा दिया गया लक्षण ‘सींगों का होना' लक्ष्य ‘गायों' और अलक्ष्य ‘गायों के अतिरिक्त अन्य पशुओं' में भी पाया जाता है। अतः यह लक्षण प्रतिव्याप्ति दोष से युक्त है। लक्षण ऐसा होना चाहिये जो पुरे लक्ष्य में तो रहे, किन्तु अलक्ष्य में न रहे। पुरे लक्ष्य में व्याप्त न होने पर अव्याप्ति और लक्ष्य व अलक्ष्य में व्याप्त होने पर अतिव्याप्ति दोष पाता है। जिज्ञासु - और असंभव ? प्रवचनकार - लक्ष्य में लक्षण की असम्भवता की असंभव दोष कहते हैं। जैसे - ‘मनुष्य का लक्षण सींग। यहाँ मनुष्य लक्ष्य है और सींग का होना लक्षण कहा जाता है, अतः यह लक्षण असम्भव दोष से युक्त है। १ “लक्ष्यैकदेशवृत्यव्याप्तं, यथा-गो: शावलेयत्वं।" ___ -न्यायदीपिका : वीर सेवा मंदिर, सरसावा , पृष्ठ ७ २ “लक्ष्यालक्ष्यवृत्यतिव्याप्तं, यथा-तस्यैव पशुत्वं।” । -न्यायदीपिका : वीर सेवा मंदिर, सरसावा , पृष्ठ ७ ३ “बाधितलक्ष्यवृत्यसम्भवि, यथा नरस्य विषाणित्वम्।” - न्यायदीपिका : वीर सेवा मंदिर, सरसावा , पृष्ठ ७ १७ Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com

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