________________
Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates
३. सामायिक प्रतिमा
द्रव्य भाव विधि संजुगत, हिये प्रतिज्ञा टेक । तजि ममता समता गहै, अन्तर्मुहूरत एक ।।
जो अरि मित्र समान विचारै, प्रारत रौद्र कुध्यान निवारै । संयम सहित भावना भावै, सो सामायिकवंत कहावै ।।
जो दूसरी प्रतिमा की अपेक्षा ग्रात्मा में विशेष लीनता बढ़ जाने के कारण दिवस में ३ बार एक अन्तर्मुहूर्त तक प्रतिज्ञापूर्वक सर्व सावद्ययोग का त्याग करके शास्त्रविहित द्रव्य व भाव सहित अपने ज्ञायकस्वभाव के आश्रयपूर्वक ममता को त्यागकर समता धारण करे अर्थात् समता का अभ्यास करे, शत्रु और मित्र दोनों को समान विचारे, आर्त व रौद्र ध्यान का अभाव करे, तथा अपने परिणामों को आत्मा में संयमन करने का अभ्यास करे, वह तीसरी सामायिक प्रतिमाधारी श्रावक है। इस प्रतिमाधारी श्रावक को आत्मानंद में लीनता ( शुद्ध परिणति ) बढ़ जाने के कारण दूसरी प्रतिमा की अपेक्षा बाह्य में आसक्ति भाव कम हो जाते हैं।
मात्र अन्तर्मुहूर्त एकान्त में बैठकर पाठ पढ़ लेने आदि से सामायिक नहीं हो जाती है वरन् ऊपर लिखे अनुसार ज्ञायकस्वभाव की रुचि एवं लीनतापूर्वक साम्यभाव का अभ्यास करना ही सच्ची सामायिक है ।
४. प्रोषधोपवास प्रतिमा
प्रथमहिं सामायिक दशा, चार पहरलौं होय । अथवा आठ पहर रहे, प्रोषध प्रतिमा सोय ।।
२
जब सामायिक की दशा कम से कम ४ प्रहर तक अर्थात् १२ घंटे तक तथा विशेष में ८ प्रहर अर्थात् २४ घंटे तक रहे, उसको प्रोषध प्रतिमा कहते हैं। प्रोषध प्रतिमाधारी श्रावक ज्ञायकस्वभाव में श्रद्धा - ज्ञानपूर्वक लीनता पूर्वापेक्षा बढ़ जाने से कम से कम मास में ४ बार हर अष्ठमी व चतुर्दशी को आहार आदि सर्व सावद्ययोग का त्याग करता है । उसे संसार, शरीर और भोगों से आसक्ति घट जाती है, अतः आहार आदि का त्याग करके उपवास की प्रतिज्ञा लेता है; वह प्रोषध प्रतिमाधारी श्रावक है ।
१ नाटक समयसार : बनारसीदास चतुर्दश गुणस्थानाधिकार, छंद ६१–६२ २ वही, छंद ६३
२६
Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com