Book Title: Tattvagyan Pathmala 1
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 25
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates पंचम गुणस्थानवर्ती श्रावक और उसकी ग्यारह प्रतिमाएँ प्राचार्य उमास्वामी का वाक्य हैं – 'सम्यग्दर्शनज्ञान चारित्राणि मोक्षमार्ग:'- सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान एवं सम्यक्चारित्र इन तीनों की एकता ही मोक्षमार्ग है। सम्यग्दर्शन प्राप्त जीव की श्रद्धा (प्रतीति तो सम्यक् हो गई, तदनुसार ज्ञान भी सम्यक हो गया तथा स्वरूप में प्रांशिक स्थिरता प्रगट हो जाने से मोक्षमार्ग का आरंभ भी हो गया है, किन्तु मात्र उतनी ही स्वरूपस्थिरता चारित्र संज्ञा प्राप्त नहीं करती, इस कारण उस जीव को चतुर्थ गुणस्थानवी अव्रती श्रावक कहा गया है। उपरोक्त चतुर्थ गुणस्थानवर्ती श्रावक विशेष पुरुषार्थपूर्वक स्वरूपस्थिरता (लीनता) बढ़ाकर पंचम गुणस्थान प्राप्त करता है। वह स्वरूपस्थिरता ही देशचारित्र है और वही पंचम गुणस्थानवर्ती श्रावक है। इस प्रकार जो स्वरूपस्थिरता (वीतरागता) की वृद्धि होती है और रागांश घटते हैं, उसे निश्चय प्रतिमा (निश्चय देशचारित्र) कहते हैं। उस यथोचित स्वरूपस्थिरतारूप निश्चय प्रतिमा के साथ जो कषाय मंदतारूप भाव रहते हैं, वह व्यवहार प्रतिमा अर्थात् व्यवहार देशचारित्र है। उसके साथ ही तदनुकूल बाह्य प्रवृत्ति होती है, वह यथार्थ में तो व्यवहार प्रतिमा भी नहीं है; लेकिन उपरोक्त कषाय मंदता के साथ तदनुकूल ही बाह्य प्रवृत्ति होती है, अतः उसको भी व्यवहार से प्रतिमा कहा जाता है। निज त्रिकाल ज्ञायक स्वभाव के अनुभव एवं लीनता बिना अकेली कषायों की मंदता व तदनुकूल बाह्य क्रिया प्रतिमा नहीं है; अतः जिसको पंचम गुणस्थान नहीं हो, उसको यथार्थ प्रतिमा नहीं हो सकती। सम्यग्दर्शनपूर्वक आत्मा के ज्ञायक स्वरूप में पंचम गुणस्थान योग्य स्थिरता ही यथार्थ देशचारित्र है और वही निश्चय से प्रतिमा हैं, वह आत्मानुभव के बिना संभव नही हैं। __ अविरत सम्यग्दृष्टि (चतुर्थ गुणस्थानवर्ती) श्रावक का स्वरूप पं. बनारसीदास ने इस प्रकार लिखा है: सत्य प्रतीति अवस्था जाकी, दिन-दिन रीति गहै समता की। छिन-छिन करै सत्य को साकौ, समकित नाम कहावै ताकौ।। १ नाटक समयसार : बनारसीदास , चतुर्दश गुणस्थानाधिकार, छंद २७ २२ Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com

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