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पाठ १
श्री सीमंधर पूजन
स्थापना
भगवान ।
भव - समुद्र सीमित कियो, सीमंधर कर सीमित' निजज्ञान को, प्रगट्यो पूरण ज्ञान ॥ प्रगट्यो पूरण ज्ञान वीर्य – दर्शन सुखधारी, समयसार अविकार विमल चैतन्य - विहारी । अंतर्बल से किया प्रबल रिपु-मोह पराभव, अरे भवान्तक! करो अभय हर लो मेरा भव॥ ॐ ह्रीं श्री सीमंधरजिन ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् । अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः । अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् ।
जल
प्रभुवर तुम जल-से शीतल हो, जल-से निर्मल अविकारी हो, मिथ्यामल धोने को जिनवर, तुमही तो मल - परिहारी हो । तुम सम्यग्ज्ञानजलोदधि हो, जलधर अमृत बरसाते हो,
भविजन- मन-मीन - प्राणदायक, भविजन- मन- जलज खिलाते हो । हे ज्ञानपयोनिधि सीमंधर ! यह ज्ञान-प्रतीक समर्पित है,
हो शान्त ज्ञेयनिष्ठा मेरी, जल से चरणाम्बुज चर्चित है ।। ॐ ह्रीं श्री सीमंधरजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलम् निर्वपामीति स्वाहा। चंदन
चंदन-सम चन्द्रवदन जिनवर, तुम चन्द्र- किरण से सुखकर हो, भव-ताप निकंदन हे प्रभुवर! सचमुच तुम ही भव - दुःख - हर हो । जल रहा हमारा अन्त स्तल, प्रभु इच्छाओं की ज्वाला से, यह शान्त न होगा हे जिनवर, रे! विषयों की मधुशाला से । चिर अंतर्दाह मिटाने को, तुमही मलयागिरि चंदन हो, चंदन से चरचूं चरणांबुज, भवतपहर ! शत शत वंदन हो ।। ॐ ह्रीं श्री सीमंधरजिनेन्द्राय संसारतापविनाशनाय चंदनम् निर्वपामीति स्वाहा।
१ ज्ञान को पर से हटा कर अपने में ही लगाना ।
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