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इस प्रकार जैन शास्त्रों के पढ़ लेने के बाद भी सातों तत्त्वों का विपरीत श्रद्धान बना रहता है ।
प्रश्न
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१. जैन शास्त्रों के अध्ययन कर लेने पर भी क्या कोई जीव मिथ्यादृष्टि रह सकता है? यदि हाँ, तो किस प्रकार ? स्पष्ट कीजिए ।
२. यह आत्मा जीव और अजीव के सम्बन्ध में क्या भूल करता है ?
३. पुण्य को मुक्ति का कारण मानने में क्या आपति है ? इस मान्यता से कौन-कौन से तत्त्व सम्बन्धी भूलें होंगी ?
४. स्वर्ग और मोक्ष में कारण और स्वरूप की अपेक्षा भेद बताइये।
५. संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखे
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गुप्ति, समिति, धर्म, अनुप्रेक्षा, चारित्र, मिथ्यात्व, अविरति, कषाय। ६. पं. टोडरमलजी के व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए ।
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