Book Title: Tattvagyan Pathmala 1
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 14
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates बंध तत्त्व सम्बन्धी भूल पापबंध के कारण अशुभ भावों को तो बूरा जानता है, पर पुण्यबंध के कारण शुभ भावों को भला मानता है । पुण्य-पाप का भेद तो प्रघाति कर्मों में है, घातिया तो पापरूप ही हैं तथा शुभ भावों के काल में भी घाति कर्म तो बंधते ही रहते है, अतः शुभ भाव बंध के ही कारण होने से भले कैसे हो सकते हैं ? संवर तत्त्व सम्बन्धी भूल १. अहिंसादिरूप शुभास्त्रवों को संवर जानता है, पर एक ही कारण से पुण्यबंध और संवर दोनों कैसे हो सकते हैं ? इसका उसे पता नहीं । २. शास्त्र में कहे संवर के कारण गुप्ति, समिति, धर्म, अनुप्रेक्षा, परिषहजय और चारित्र को भी यथार्थ नहीं जानता । जैसे : (क) पाप चिंतवन न करे, मौन धारण करे, गमनादि न करे, उसे गुप्ति मानता है; पर भक्ति प्रादिरूप प्रशस्तराग से नाना विकल्प' होते हैं, उनकी तरफ लक्ष्य नहीं । वीतरागभाव होने पर मन-वचन-काय की चेष्टा न हो वही सच्ची गुप्ति है। (ख) इसी प्रकार यत्नाचार प्रवृत्ति को समिति मानता है, पर उसे यह पता नहीं कि हिंसा के परिणामों से पाप होता है और रक्षा के परिणामों से संवर कहोगे तो पुण्यबंध किससे होगा ? मुनियों के किंचित् राग होने पर गमनादि क्रिया होती है, वहाँ उन क्रियाओं में प्रत्यासक्ति के अभाव में प्रमादरूप प्रवृत्ति नहीं होती । तथा अन्य जीवों को दुःखी करके अपना गमनादि प्रयोजन नहीं साधते, अतः स्वयमेव दया पलती है यही सच्ची समिति है। (ग) बंधादिक के भय से, स्वर्ग-मोक्ष के लोभ से क्रोधादि न करे। क्रोधादि का अभिप्राय मिटा नहीं, पर अपने को क्षमादि धर्म का धारक मानता है । तत्त्वज्ञान के अभ्यास से जब कोई पदार्थ इष्ट और अनिष्टरूप भासित नहीं होते, तब स्वयमेव ही क्रोधादि उत्पन्न नही होते तब सच्चा धर्मं होता है । १ रागद्वेष-युक्त विचार - — ११ Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com

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