Book Title: Tattvagyan Pathmala 1
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 17
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates पाठ ३ लक्षण और लक्षणाभास अभिनव धर्मभूषण यति व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व (१३५८–१४१८ ई.) धर्मभूषण नाम के कई जैन साहित्यकार हुए हैं। उन सबसे पृथक् बतलाने के लिए इनके नाम के आगे अभिनव शब्द और अन्त में यति शब्द जुड़ा मिलता है। ये कुन्दकुन्दाम्नायी थे और इनके गुरु का नाम वर्द्धमान था। इनका अस्तित्व १२५८ से १४१८ ई. तक माना जाता हैं। इनके प्रभाव और व्यक्तित्व सुचक जो उल्लेख मिलते हैं उनसे पता चलता है कि ये अपने समय के बड़े ही प्रभावशाली व्यक्तित्व वाले महापुरुष थे। राजाधिराज परमेश्वर की उपाधि से विभूषित प्रथम देवराय इनके चरणों में मस्तक झुकाया करते थे। जैनधर्म की प्रभावना करना तो इनके जीवन का व्रत था ही, किन्तु ग्रन्थरचना कार्य में भी इन्होंने अपनी अनोखी सूझबूझ, तार्किक शक्ति और विद्वत्ता का पूरा-पूरा उपयोग किया है। आज हमें इनकी एकमात्र अमर रचना ‘न्यायदीपिका' प्राप्त है, जिसका जैन न्याय में अपना एक विशिष्ट स्थान है। 'न्यायदीपिका' संक्षिप्त, किन्तु अत्यन्त सुविशद एवं महत्त्वपूर्ण कृति है। इसमें संक्षेप में प्रमाण और नय का तर्कसंगत वर्णन है। यद्यपि न्यायग्रन्थों की भाषा अधिकांशतः दुरूह और गंभीर होती है, किन्तु इस ग्रन्थ की भाषा सरल एवं सुबोध संस्कृत है। १. न्यायदीपिका प्रस्तावना : वीर सेवा मंदिर, सरसावा, पृष्ठ ९२-९३ २. वही, पृष्ठ ९९-१०० ३. मिडियावल जैनिझम, पृष्ठ २९९ Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com

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