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( १० )
(१) संसारादर्शन वेद ( २ ) संस्थापन परामर्शन वेद ( ३ ) तत्त्वावबोध वेद ( ४ ) विद्याप्रबोध वेद. ब्रह्मचर्य पालनेवालोंका नाम ब्राह्मण था . यह आर्यवेद और सम्यग्दृष्टि er ये दोनों वस्तु श्रीसुविधिनाथ पुष्पदंत नवमे तीर्थंकर तक यथार्थ चली. दक्षिण में कितने ऐसे वैदिक ब्राह्मण अब भी विद्यमान हैं, जो आधुनिक वेदोंसें कोई अन्य रीतीका वेद मंत्र पढते हैं. ये आर्यवेद कि जिसको तमाम जैन मानते थे विच्छेद होगये, परंतु उनके ३६ उपनिषद् मोजूद हैं. यह प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथसे कला, दंडनीति, कृषी, अग्नि इत्यादिका आरंभ हुवा है. ( मनुजी भी मनुस्मृतिमें ऐसाही लिखते हैं. आगे श्लोक देखो. ) श्री सुविधि नाथ के पीछे, जब आर्यवेद विच्छेद हो गये, तब उस बखतके ब्राह्मणाभासोंने अनेक तरहकी श्रुतीआं रचीं. उनमें इंद्र, वरुण, पूषा, नक्त, अग्नि, वायु, अश्विनौ, उषा इत्यादि देवताओंकी उपासना करनी लोकोको उपदेश किया; अनेक तरहके यजन याजन करवाए, और कहने लगे कि हमने इसीतरह अपने वृद्धोंसे सुना है. इस हेतुसे तिन श्लोकोंका नाम श्रुति रक्खा. अपने आपको गौ, भूमी, आदि दानके पात्र ठहराये, और जगद्गुरु कहलाने लगे. इन हिंसक श्रुतिओंको वेदके नामसे प्रचलित की. वेदव्यासजीने श्रुतिएं एकटी कीं, और जुदे जुदे कारणों से उनके चार नाम रक्खे जो सांप्रत कालके ब्राह्मणों के ऋग्, यजुम साम और अथर्ववेद हैं. व्यासजीने ब्रह्मसूत्र रचा सो वेदांतमत के ये मुख्य आचार्य कहे जाते हैं. यह वेदव्यासजीने ब्रह्मसूत्रके तीसरे अध्यायके दूसरा पादके तेतीसमे सूत्रमें जैनोंकी सप्तभंगीका खंडन कीया है, जिसका प्राबल्य होता है, उसका खंडन लिखा जाता है, तो वेदव्यासजी के वखतमें जैन धर्म विद्यमान था. वेदव्यासजी के शिष्य जैमिनीने मीमांसा बनाया. व्यासजी के शिष्य वैशंपायन के शिष्य याज्ञवल्क्यको गुरु और दूसरे ऋषाओंके साथ लढाई होने से उनोनें यजुर्वेद छोडके शुक्ल यजुर्वेद बनाया. इत्यादि कहांतक विस्तार किया जाय. पुराणादि ग्रंथोंने एक दूसरेको और वेदका बहोत खंडन किया है. यहांतक पढनेवालोंको भी नागंवार मालूम होता है. इस ग्रंथ में जैन धर्मकी प्राचीनता बेदोंसे पहेलेकी अच्छे प्रमाणोंसें सिद्ध की है. फिर इन्ही वेदोंमें, स्मृतिम, महाभारत, भागवत पुराणादि ग्रंथों में लीखे हुए जैन धर्मकी प्राचीनताका अन्य प्रमाण भी नीचे लीखा जाता है.
मको पाठकगण निष्पक्षपाती होकर पढे और सत्यासत्यका विचार करे कीतनेक लोक कपोलकल्पित शंका करते हैं कि जैनधर्म बौध की शाखा है. उनको कहा जाय कि जैनमत बौद्धकी शाखा नही, परंतु एक अनादि धर्म है, जो इस पुस्तक के स्तंभ ३३ में ऐतिहासिक और शीला लेखों के प्रमाण द्वारा और प्रो० जेकोबीका प्रमाण देकर अच्छी तरह सिद्ध किया है. फिर भी बौद्धों के ग्रंथ " महाविनयसूत्र " और " समानफलासूत्र " में जैनोंके चोबीसमे तीर्थंकर श्री महावीर स्वामिको “ ज्ञातपुत्र " लिखकर वहोत संबंध लिखा है; बौद्धोंका “ विनयत्रीपीठीका" ग्रंथका तरजुमा “ लाईफ ऑफ श्री बुद्ध नामा पुस्तक में प्रो० जे. डबल्यु. उडवील राखीलने किया है, जिसका पृष्ठ ६५, ६६, १०३, १०४ पर जैनोंके निर्ग्रथके संबंध में और पृष्ठ ७९, ९६, १०४, २५९ पर महावीर स्वामी के लिये जो लेख है वो पढने से पाठक वर्ग संतोषित होंगे कि प्रथम बुद्धके वखतमें जैनधर्म विद्यमान था. कितनेक लोक राजा शिवप्रसाद सी. आई. ई. का बनाया हुवा " इति -
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